प्रत्येक अवसर्पिणी – उत्सर्पिणी के काल भेदों में षट्काल परिवर्तन में सुषमा –सुषमा, सुषमा और सुषमा – दु:षमा इन तीन कालों में भोगभूमि की व्यवस्था रहती है । भोगभूमि में सदैव कल्पवृक्ष रहते है। जो कि दस प्रकार के होते है इससे मनुष्यों की उपजीविका चलती है और वे सदैव सुखी रहते है यह दश प्रकार के कल्पवृक्ष है – पानांग, तूर्यांग, भूषणांग, वस्त्रांग, भोजनांग, आलयांग, दीपांग, भाजनांग, मालांग और ज्योतिरंग । पानांग जाति के कल्पवृक्ष बत्तीस प्रकार के मधुर पेयद्रव्य देते हैं, तूर्यांग कल्पवृक्ष वीणा, मृदंग आदि वादित्रों को देते है । भूषणांग कल्पवृक्ष कंकण, कटिसूत्र हार आदि आभूषणों को, वस्त्रांग कल्पवृक्ष सुन्दर वस्त्रों को , भोजनांग कल्पवृक्ष सोलह प्रकार का आहार व व्यंजन, चौदह प्रकार की दाल , एक सौ आठ प्रकार के खाद्य पदार्थ, तीन सौ त्रेसठ प्रकार के स्वाद्य पदार्थं एवं त्रेसठ प्रकार से रस देते है । आलयांग कल्पवृक्ष नंद्यावर्त आदि सोलह प्रकार के दिव्य भवन, दीपांग कल्पवृक्ष शाखा, फूल और अंकुरादि के द्वारा जलते हुए दीपकों के समान प्रकाश देते है । भाजनांग कल्पवृक्ष सुवर्ण आदि निर्मित झारी आदि बर्तन व आसन देते है , मालांग कल्पवृक्ष सोलह हजार भेदरूप सुगन्धित पुष्पों की मालाओं को और ज्योतिरंग जाति के कल्पवृक्ष मध्य दिन के करोड़ो सूर्यो की किरण के समान होते हुए सूर्य, चन्द्र की कान्ति का संहरण करते है ये सब न वनस्पतिकायिक ही है और न ही व्यन्तर देव है किन्तु विशेषता यह है कि ये सब पृथ्वीरूप होते हुए जीवों को अनेक पुण्यकर्म का फल देते हैं ।