मन,वचन व काय सम्यक प्रकार निग्रह करना गुप्ति है वह गुप्ति तीन प्रकार की है – मनगुप्ति, वचनगुप्ति व कायगुप्ति । इन गुप्तियों को मुनिगण धारण करते है । रागद्वेष से अवलम्बित समस्त संकल्पों को छोड़कर जो मुनि अपने मन को स्वाधीन करता है समता भाव में स्थिर करता है तथा सिद्धान्त के सूत्र की रचना में निरन्तर प्रेरणारूप करता है उस बुद्धिमान मुनि के सम्पूर्ण मनोगुप्ति होती है । वचनों की प्रवृत्ति को उचित प्रकार से वश में करने वाले तथा संज्ञादि का त्याग कर मौनारूढ़ होने वाले महामुनि के वचन गुप्ति होती है । शरीर को स्थिर करने वाले परीषह आ जाने पर भी न डिगने वाले मुनि के कायगुप्ति मानी गयी है ।