पांच पापो में से एक।
पाप पांच होते है – हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह । पराई स्त्री के साथ या परपुरूष के साथ रमने को कुशील कहते है। इस पाप को करने वाले व्यभिचारी, जार, बदमाश कहलाते है और लोक में बुरी नजर से देखे जाते है। उदाहरणार्थ रावण ने सीता के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसका अपहरण कर लिया और मात्र परस्त्री की इच्छा करने से ही रामचन्द्र के भाई लक्ष्मण के द्वारा मारा गया और नर्क गया तब जो परस्त्री का सेवन करते है उनको तो नरकों के दु:ख निश्चित भोगने पड़ते है । सीता ने अपने शील की रक्षा की इसलिए उसकी परीक्षा में अग्नि भी जल हो गयी थी । आज तक सर्वत्र विश्व में सीता के शील की कीर्ति फैल रही है और रावण के कुशील भाव की अकीर्ति फैल रही है, कोई भी माता अपने बालक का नाम रावण नहीं रखना चाहती है अपितु राम – सीता यह नाम बड़े प्यार से रखते है।
जो प्राणी इस पाप से दूर रहते हुए शीलव्रत अथवा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं उन्हें मनुष्य तो क्या देवता भी नमस्कार करते है। ब्रह्मचर्य व्रत सभी व्रतों में अधिक महिमाशाली है और इसका निरतिचार पालन करने से लौकान्तिक देव बन एक भवावतारी हो मोक्ष चले जाते हैं ।