ज्ञान आठ प्रकार है जिसमें ५ ज्ञान सुज्ञान हैं और ३ कुज्ञान १५ सुज्ञानों में अन्तिम केवलज्ञान है । जीवन्मुपत योगियों का एक निर्विकल्प अतीन्द्रिय अतिशय ज्ञान है जो बिना इच्छा व बुद्धि के प्रयोग के सर्वांग से सर्वकाल व क्षेत्र सम्बन्धी सर्व पदार्थों को हस्तामलकवत् टंकोत्कीर्ण प्रत्यक्ष देखता है। इसी के कारण वह योगी सर्वज्ञ कहाते है। स्व व परग्राही होने के कारण इसमें भी ज्ञान का सामान्य लक्षण घटित होता है। यह ज्ञान का स्वाभाविक व शुद्ध परिणमन है।
मोह का क्षय हो जाने से तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अन्तराय कर्म का क्षय हो जाने से केवलज्ञान प्रकट होता है और इसके प्रकट होते ही तत्क्षण पृथ्वी से ५००० धनुष ऊपर सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से धनकुबेर आकाश में दिव्य समवसरण की रचना कर देता है और भगवान की दिव्यध्वनि खिरने लगती है।
तत्त्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वामी ने कहा – ‘सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य’ अर्थात् सब द्रव्यों को और सब द्रव्यों की त्रिकालवर्ती अनन्तानन्त पर्यायों को केवलज्ञान एक साथ एक समय में प्रत्यक्ष जानता है।