केवलज्ञान होने के पश्चात् वह साधक केवली कहलाता है इसी का नाम अर्हन्त या जीवन्मुक्त भी है। वह दो प्रकार के होते है-तीर्थंकर व सामान्य केवली । विशेष पुण्यशाली तथा साक्षात् उपदेशादि द्वारा धर्म की प्रभावना करने वाले तीर्थंकर होते है और इनके अतिरिक्त अन्य सामान्य केवली होते हैं। वे भी दो प्रकार के होते है- कदाचित् उपदेश देने वाले और मूक केवली। मूक केवली बिल्कुल भी उपदेशादि नहीं देते। उपरोक्त सभी केवलियों की दो अवस्थाएं होती है सयोग और अयोग । जब तक विहार व उपदेश आदि क्रियाएं करते है तब तक सयोगी और आयु के अन्तिम कुछ क्षणों में जब इन क्रियाओं का त्याग कर सर्वथा योगनिरोध कर देते है तब अयोगी कहलाते है।
केवली भगवान तीसरे और चौथे काल में ही होते है। केवली कभी कवलाहार नहीं करते ।