पाण्डव पुराण के अनुसार धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि १०० पुत्र कौरव कहलाते थे। जिन्होने भीष्म व द्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त कर राज्य को प्राप्त किया । धृतराष्ट्र के भाई पाण्डु के युधिष्ठिर, भीम,अर्जुन,नकुल और सहदेव यह ५ पुत्र थे जो पाण्डव कहलाते थे। अनेको क्रीड़ाओं में कौरवों को पाण्डवों द्वारा पराजित होना पड़ता था इससे यह पाण्डवों से क्रूद्ध हो गये । भरी सभा से कौरवो ने एक दिन कहा कि हमें सौ को आधा राज्य और इन पांच को आधा राज्य दिया गया यह हमारे साथ अन्याय हुआ और सदैव पूरे राज्य को हड़पने के प्रयास में लगे रहे । एक समय कपट से लाख गृह बनाकर दिखावटी प्रेम से पाण्डवों को रहने के लिए प्रदान किया और मौका देखकर उसमें आग लगवादी परन्तु सौभाग्य से पाण्डव वहां से गुप्त रूप से निकलकर प्रवास में रहने लगे और ये भी दिखावटी शोक करके शान्तिपूर्वक रहने लगे । पुन: द्रौपदी के स्वयंवर में पाण्डवों से मिलाप होने पर आधा राज्य बांट कर रहने लगे । परन्तु दुर्योधन ने ईष्र्यापूर्वक युधिष्ठिर को जुए में हराकर १२ वर्ष का देश निकाला दे दिया वह वनवास में रहने लगे । एक समय सहायवन में अर्जुन के शिष्यों ने दुर्योधन को बांध लिया परन्तु अर्जुन ने दया से उसे छोड़ दिया तब दुर्योधन का क्रोध अत्यधिक प्रज्वलित हो उङ्गा तब आधे राज्य के लालच से कनकध्वज नामक व्यक्ति ने दुर्योधन की आज्ञा से पाण्डवों को मारने की प्रतिज्ञा की परन्तु एक देव ने उसका प्रयत्न निश्फल कर दिया । तत्पश्चात् विराट नगर में इन्होने गाोकुल लूटा उसमें भी पाण्डवों द्वारा हराये गये अन्त में कृष्ण व जरासन्ध के युद्ध में सब पाण्डवों के द्वारा मारे गये ।