दु:खी होना
कषाय सहित जीव जो कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता है वह बंध है उसके प्रकृति आदि चार बंध है उनमें प्रकृति बंध के ज्ञानावरणादि आङ्ग भेद है जिसमें वेदनीय कर्म के दो भेद है- साता वेदनीय तथा असाता वेदनीय । जिस कर्म के उदय से शारीरिक और मानसिक अनेक प्रकार की सुख सामग्री मिले या सुख मिले उसे सातावेदनीय कहते है तथा जिसके उदय से दु:खदायक सामग्री या दु:ख प्राप्त हो वह असातावेदनीय है । असातावेदनीय के उदय से जो दु:खी है वे क्लेश परिणाम वाले होेने से क्लिश्यमान कहलाते हैं ।