आज से करोड़ो वर्ष पूर्व कर्मभूमि के प्रारम्भ में भगवान ऋषभदेव ने क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन चार वर्णों की स्थापना की और उनके दीक्षित होने के पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत ने ब्राह्मण वर्ण की स्थापना की । उस समय जो शस्त्र धारण कर आजीविका करते थे वे क्षत्रिय हुए।
उस समय भगवान ने अपनी दोनों भुजाओं में शस्त्र धारण कर क्षत्रियों की सृष्टि की थी अर्थात् उन्हें शस्त्र विद्या का उपदेश दिया था सो ठीक ही है जो हाथों में हथियार लेकर सबल शत्रुओं के प्रहार से निर्बलों की रक्षा करते हैं वे ही क्षत्रिय कहलाते है।
श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भद्रबाहु प्रथम (श्रुतकेवली) के पश्चात् तृतीय ११ अंग व चौदह पूर्वधारी हुए हैं अपरनाम कृतिकार्य था।