४.१ सामान्य भाषा में प्रतिमा का अर्थ पाषाण, धातु या रत्नों की बनी प्रतिमा से होता है। किन्तु नैष्ठिक श्रावक के संदर्भ में व्रत आदि गुणों में उत्तरोत्तर विकास हेतु ग्यारह पद या दर्जे कहे गये हैं। ये ही श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ कहलाती हैं। प्रतिमाएँ तप, साधना की क्रमशः बढ़ती हुई अवस्थाएँ हैं। अगली प्रतिमाधारी को पूर्व की प्रतिमाओं के व्रत, नियम आदि की पालना करना भी आवश्यक होता है। श्रावक अपने व्रत, नियम, तप, साधना आदि की पालना करता हुआ प्रथम से दूसरी और दूसरी से तीसरी तथा इसी प्रकार ग्यारहवीं प्रतिमा तक चढ़ता है। प्रतिमाएँ जीवन भर के लिये ली जाती हैं, सीमित अवधि के लिये नहीं।
प्रथम से छठवीं प्रतिमाधारियों को जघन्य श्रावक (गृहस्थ) कहते हैं, सातवीं से नवमी प्रतिमाधारियों को मध्यम श्रावक (ब्रह्मचारी) कहते हैं और दसवीं व ग्यारहवीं प्रतिमाधारियों को उत्तम श्रावक (भिक्षुक) कहते हैं। ऐलक, क्षुल्लक और क्षुल्लिका ११ प्रतिमाधारी होते हैं। ग्यारह प्रतिमा के ऊपर मुनि अथवा आर्यिका का पद होता है।
१. दर्शन प्रतिमा – निर्मल सम्यग्दर्शन के साथ अतिचार रहित अष्ट मूलगुण का धारण करना तथा सप्त व्यसनों का त्याग करना श्रावक की पहली प्रतिमा है। वह संसार से उदासीन रहता है, किसी शुभ कर्म के फल की इच्छा नहीं करता है, रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है, भोजन में चींटी, बाल आदि आने पर अंतराय करता है, सदाचार का पालन करता है, न्याय नीति से व्यापार, कृषि आदि कार्य करता है, आदि।
२. व्रत प्रतिमा – जो १२ व्रतों (५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत, और ४ शिक्षाव्रत) का पालन करता है, वह दूसरी प्रतिमा का धारी है।
३. सामायिक प्रतिमा – प्रतिदिन तीन बार (प्रातः, मध्यान्ह और सायंकाल) नियम पूर्वक सामायिक करने की प्रतिज्ञा लेना इस प्रतिमा में आता है। इसमें बारह भावना, सोलह कारण-भावना, संसार भोगों की क्षण भंगुरता तथा आत्म स्वरूप आदि का चिन्तवन व णमोकार मंत्र आदि का जाप किया जाता है।
४. प्रोषधोपवास प्रतिमा – दिन में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास है तथा एक बार भोजन करना प्रोषध है। प्रत्येक माह में आने वाले ४ पर्वों (२ अष्टमी और २ चतुर्दशी) को प्रोषध/ उपवास करना तथा एकान्त में बैठकर धर्म ध्यान करने वाला इस प्रतिमा का धारी होता है। उत्कृष्ट प्रोषध प्रतिमा में पर्व के दिन उपवास और उसके पूर्व के और बाद के दिनों में एक बार भोजन किया जाता है। मध्यम में तीनों दिन एकासन किया जाता है तथा जघन्य में पर्व के दिन एक बार भोजन किया जाता है। केवल भूखा रहने का नाम उपवास नहीं है बल्कि पाँचों इन्द्रियों के विषयों के प्रति उदासीन होना भी आवश्यक है।
५. सचित्त-त्याग प्रतिमा – जिस वस्तु में जीव हों उसे सचित्त कहते हैं। अतः ऐसे पदार्थ जिनमें जीव हों, उन्हें नहीं खाने वाला सचित्त-त्याग प्रतिमाधारी होता है। कच्चे जल, कच्चे फल, बीज आदि हरित काय वनस्पति सचित्त हैं। इस प्रतिमाधारी के द्वारा इनका त्याग किया जाता है। सूखने पर या अग््िना पर पकाये जाने पर वनस्पति आदि पदार्थ अच्यि या प्रासुक हो जाते हैं। सचित्त वस्तु को अचित्त करने में यद्यपि जीव हिंसा तो होती है, किन्तु इस प्रतिमाधारी द्वारा सचित्त वस्तु का उपयोग नहीं किया जा सकता है और वह अचित्त का ही उपयोग कर सकता है।
६. रात्रि भुक्ति त्याग प्रतिमा – जो रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है, वह इस प्रतिमा का धारी होता है। भोजन करने का समय सूर्यास्त से २ घड़ी (४८ मिनट) पूर्व तथा सूर्योदय से २ घड़ी पश्चात् है।
दूसरे व्यक्ति को रात्रि में भोजन कराने का त्याग भी इस प्रतिमाधारी के होता है। पहली प्रतिमाधारी के भी रात्रि भोजन का त्याग होता है। फिर भी कुटुम्बी-जन अथवा अन्य लोगों के निमित्त से कारित और अनुमोदना सम्बन्धी जो दोष लगता था, उसका यहां त्याग हो जाता है। जैनेतर समाज के व्यक्ति द्वारा यदि श्रावक-धर्म अंगीकार किया जाता है तो उसे प्रथम प्रतिमा में रात्रि भोजन त्याग कठिन होता है। इसी से छठवीं प्रतिमा में सभी प्रकार के रात्रि भोजन का त्याग कहा है।
दिवा-मैथुन त्याग प्रतिमा – उक्त छठी प्रतिमा का दूसरा नाम दिवा-मैथुन त्याग प्रतिमा भी है क्योंकि दिन में काम सेवन का उसके पूर्ण त्याग रहता है।
७. ब्रह्मचर्य प्रतिमा – काम-सेवन से पूर्णतया विरक्त होकर अपनी पत्नी तथा अन्य सभी स्त्रियों का त्याग करना ब्रह्मचर्य प्रतिमा है।
८. आरम्भ त्याग प्रतिमा – आजीविका तथा गृह कार्य सम्बन्धी सभी क्रियाओं का त्याग करना आरम्भ त्याग प्रतिमा कहलाता है।
इस प्रतिमा का धारी, हिंसा के कारण खेती, नौकरी, व्यापार आदि कार्यों की सभी क्रियाओं का त्याग कर देता है। वह धार्मिक कार्य (पूजन आदि) कर सकता है। परन्तु जीविका उपार्जन हेतु कोई क्रिया नहीं करता है। अपने पूर्व संचित धन से ही अपना जीवन निर्वाह करता है। श्रावक के द्वारा बुलाये जाने पर उसके यहां भोजन कर सकता है।
९. परिग्रह त्याग प्रतिमा – दैनिक उपभोग में आने वाली कुछ वस्तुओं (वस्त्र, बर्तन, पूजन के उपकरण आदि) को छोड़कर शेष समस्त परिग्रह का त्याग करना परिग्रह त्याग प्रतिमा है। यह प्रतिमाधारी घर का त्याग कर देता है और संघ या धर्मशाला में रहता है। वह श्रावक द्वारा निमंत्रित करने पर भोजन ग्रहण करता है। परिग्रह के २४ भेद हैं- अंतरंग १४ व बाह्य १० ।
१०. अनुमति त्याग प्रतिमा – इस प्रतिमा का धारी अपने परिजन या अन्य व्यक्तियों को खेती, व्यापार, विवाह आदि संसारी कार्यों के सम्बन्ध में अनुमति या सलाह नहीं देता है और अनुमोदन भी नहीं करता है।
११. उद्दिष्ट आहार त्याग प्रतिमा – उद्दिष्ट का अर्थ होता है जिसका विचार किया गया हो या जो नियत किया हुआ है। दाता और पात्र की दृष्टि से उद्दिष्ट आहार दो प्रकार का होता है। दाता यदि दोष युक्त आहार साधु को देता है तो वह दाता सम्बन्धी उद्दिष्टाहार है। यदि पात्र अर्थात् साधु या व्रती अपने लिये आहार बनवाये अथवा आहार के उत्पादन सम्बन्धी कोई विकल्प करें तो वह पात्र सम्बन्धी उद्दिष्टाहार है।
जो अपने घर को छोड़कर मुनि संघ में दीक्षा ग्रहण करके साधना करता है, उद्दिष्ट आहार का त्याग करता है, निमंत्रण से आहार स्वीकार नहीं करता है, आहार हेतु याचना नहीं करता है, दिन में एक बार आहार ग्रहण करता है, खण्ड वस्त्र धारण करता है, वह इस ग्यारहवीं प्रतिमा का धारी होता है।
ऐलक – ये केवल लंगोटी रखते हैं, अन्य कोई वस्त्र नहीं रखते हैं, पिच्छी व कमण्डलु रखते हैं, नियम से केशलोच करते हैं, दिन में एक बार बैठ कर कर-पात्र (हाथ) में आहार लेते हैं और पैदल विहार करते हैं।
क्षुल्लक – ये एक लंगोटी और एक खण्ड-वस्त्र (दुपट्टा) रखते हैं। ये सिर, दाढ़ी-मूंछ की हजामत कैंची से या उस्तरे से करवा सकते हैं, अथवा केशलोंच भी कर लेते हैं, पिच्छी और कमण्डलु रखते हैं, बैठकर पात्र (कटोरा-थाली आदि) में भोजन ग्रहण करते हैं।
यद्यपि आर्यिका व ऐलक दोनों पंचम गुणस्थानवर्ती होते हैं फिर भी आर्यिका पद में बड़ी होती है। ऐलक के पास केवल एक छोटी सी लंगोटी होती है। वह चाहे तो उसे भी त्याग कर मुनिपद धारण कर सकता है मगर वह लंगोटी को छोड़ता नहीं है। अतः उपचार से वह महाव्रती नहीं हो सकता है। जबकि आर्यिका के पास साड़ी होते हुए भी उसे उपचार से महाव्रती माना गया है क्योंकि साड़ी नहीं छोड़ना उसकी मजबूरी है। फलस्वरूप आर्यिका का पद ऐलक से बड़ा होता है और वह (ऐलक) आर्यिका को वंदामि करता है।