ज्ञान आदि आठ प्रकार से अपना बड़प्पन मानने को गणधरादि ने मद कहा है। आचार्यों ने दो प्रकार से मद के भेद बताए हैं-
विज्ञानमैश्वर्यं आज्ञा कुलबलतपोरूपजाति: मदा: ।
अर्थात् विज्ञान, ऐश्वर्य, आज्ञा, कुल, बल, तप, रूप और जाति ये आठ मद हैं। रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा गया है-
ज्ञानं पूजा कुलं जातिं बलमृद्धिं तपो वपु:।
अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मया: ।।
ज्ञान,पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप, शरीर की सुन्दरता इन आठो को आश्रय करके गर्व करने को मद कहते है। उसमें मै ज्ञानवान हूँ, सकल शास्त्रों का ज्ञाता हूँ यह ज्ञानमद कहलाता है।