ऋजुता का दूसरा नाम सरलता है।‘‘योगस्यावक्रता आर्जवम् ।’’ अर्थात् मन,वचन,का की सरलता का नाम आर्जव है, ऋजु अर्थात् सरलता का भाव आर्जव है। जो कुटिलता करते हैं मायाचारी करते है उन्हें अनंत कष्टों को देने वाली तिर्यंच योनि मिलती है परन्तु ऋजुता का पालन करने वाला एक दिन तीर्थंकर पद को भी प्राप्त कर लेता है। जहां पर कुटिल परिणाम का त्याग कर दिया जाता है वहीं ऋजुता प्रकट होती है जो परम अतीन्द्रिय सुख का पिटारा है। ऋजुता को आर्जव धर्म कहा है। सरल भाव से ऊर्ध्वगति होती है इसका अर्थ यह भी है कि ऋजुगति से जीव मोक्ष गमन करता है और कुटिलता से चारों गतियों में संसार में भ्रमण करता है।
ज्ञानार्णवग्रन्थ में श्री गुणभद्र स्वामी कहते है-
भेयं मायामहागर्तात् मिथ्याघन तमोमयात् ।
यस्मिन् लीना न लक्ष्यंंते क्रोधादि विषमाहय:।।
अर्थात् निविड़ मिथ्यात्वरूपी अधंकार से व्याप्त इस मायारूपी महागड्ढे से हमेशा डरना चाहिए क्योंकि इसमें छिपे हुए क्रोध आदि विषम सर्प दिख नहीं सकते है।’
सरलता, ऋजुता,आर्जव मन को स्थिर करने वाला, पापों को नष्ट करने वाला और सुख का उत्पादक है। इसलिए इस भव में इस आर्जव धर्म को आचरण में लाकर, उसका पालन कर, उसको सुनकर सदैव उसी में अनुरक्त रहना चाहिए क्योंकि वह भव का क्षय करने वाला है।