संसारी जीव के त्रस और स्थावर ऐसे दो भेद है। दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीव त्रस कहलाते है तथा एकेन्द्रिय जीव को स्थावर जीव कहते है। इन जीवों के केवल शरीर रूप एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है। इन स्थावर जीवों के पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक, ऐसे पांच भेद है जिसमें अग्निकायिक जीव हैं अर्थात् अग्नि ही जिनका शरीर हो।
अग्नि त्रिकोण व लाल होती है। धुआँ रहित अंगार, ज्वाला, दीपक की लौ, कंडा की आग और वज्रग्नि, बिजली आदि से उत्पन्न अग्नि, सामान्य अग्नि- ये तेजस्कायिक जीव है इनको जानकर इनकी हिंसा का त्याग करना चाहिए ।
प्रत्येक तीर्थंकर की माता भगवान के गर्भावतार से पूर्ण सोलह स्वप्न देखती है जिसमे एक स्पप्न निर्धूम अग्नि भी है जिसका फल है-