मन रहित जीव असंज्ञी कहलाते हैं। जो जीव मन के अवलम्बन से शिक्षा, क्रिया, उपदेश और आलाप को ग्रहण करता है उसे संज्ञी कहते है जो इससे विपरीत है उसको असंज्ञी कहते है।
एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय जीव असंज्ञी ही होते है। पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में कोई जीव असंज्ञी होते है बाकी संज्ञी होते है। असंज्ञी जीव मरकर पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा मनुष्य इन दस स्थानों में जन्म ले सकते है तथा इन दस स्थानों से निकलकर ही असंज्ञी हो सकते है इनका अस्तित्व भी कर्मभूमि में ही है अन्यत्र नहीं पाये जाते है। इनके एक मिथ्यात्व गुणस्थान रहता हे अर्थात् ये मिथ्यादृष्टि ही बने रहते है।