ज्ञानावरणादि आठ कर्मो का समूह।
जो आत्मा को परतन्त्र करता है, दु:ख देता है, संसार परिभ्रमण कराता है उसे कर्म कहते हैं। अनादिकाल से जीव का कर्म के साथ सम्बन्ध चला आ रहा है। कर्म के मूल दो भेद हैं- द्रव्यकर्म और भावकर्म । पुद्गल के पिण्ड को ‘द्रव्यकर्म’ कहते है और उसमें जो फल देने की शक्ति है वह भावकर्म है। कर्म के मूल आठ भेद होते है- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अंतराय।
इन आठ कर्मों में भी घातिया अघातिया के भेद से दो भेद होते है। जो जीव के गुणों का घात करते हैं वे घातिया कर्म हैं जैसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय तथा जो पूर्णतया गुणों का घात न कर सकें वह अघातिया कर्म है जैसे वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र ।