मान, घमण्ड करना
कर्मों के द्वारा निर्मित जो पर्याय है और निश्चयनय से आत्मा से भिन्न हैं उसमें आत्मा का जो मिथ्या आरोप है, उसका नाम अहंकार है जैसे मैं राजा हूँ । इसका दूसरा नाम मद है जो आठ प्रकार का है- ज्ञान मद, पूजा मद, कुल मद, जाति मद, बल मद, वृद्धि मद, तप मद और रूप मद। इन मद अर्थात् अहंकार का त्याग करना चाहिए।
रावण जैसे बलवान राजा को मात्र अहंकार, अभिमान ने ही नर्क में ढकेल दिया। इन्द्रभूति गौतम को अपनी विद्वत्ता पर बड़ा अहंकार था पर भगवान महावीर के समवसरण में आते ही उसका मान गलित हो गया और उनने भगवान महावीर के समवसरण में दीक्षा ग्रहण कर गणधर पद प्राप्त किया। तात्पर्य यह है कि अहंकार हमें सदैव गर्त में ले जाने वाला हैं और मृदुत से हम तीर्थंकर पद भी पा सकते हैं।