जैनागम चार भागों में विभक्त है जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं – प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग । धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष अथवा एक पुरूष के आश्रय कथा का अथवा त्रेसठ शलाका पुरूषों के चरित्र या पुण्य का, रत्नत्रय व ध्यान का जो कथन करता है वह प्रथमानुयोग है। लोक, अलोक के विभाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के समान प्रगट करने वाले करणानुयोग को सम्यग्ज्ञान जानता है। गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि, रक्षा के अंगभूत शास्त्र चरणानुयोग कहलाते हैं। द्रव्यानुयोग रूपी दीपक जीव-अजीव रूप युतत्त्वों को, पुण्य-पाप और बंध मोक्ष को तथा भावश्रुत रूपी प्रकाश को विस्तारता है।
इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं।