विदेह क्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी में चक्रधर नगर के चक्रवर्ती त्रिभुवनानंद की पुत्री। किसी समय उसी के सामन्त पुनर्वसु ने उसके सौन्दर्य पर आसक्त हो उसका अपहरण कर लिया । विमान मे बिठाकर भागते समय चक्रवर्ती की सेना द्वारा उसके विमान को चूर्ण कर डाला गया तब उसने पर्णलहवी विद्या के सहारे उसे वन में छोड़ दिया, वह श्वापद नामक महाअटवी में गिरी और अत्यन्त दुखित अवस्था में रहते हुए भी तीन हजार वर्ष तक घोर तपश्चरण किया। पुन: जीवन से निराश हो उसने सौ हाथ से बाहर न जाने की प्रतिज्ञा कर सल्लेखना ले ली। उधर पुन: उसकी परीक्षा हुई कि उधर से मेरू वन्दना कर आते हुए लब्धिदास नामक पुरूष ने उसे देख पिता को खबर दी। चक्रवर्ती जब वहां पहुंचे तब तक उसे अजगर ने आधा निगल लिया था जिसे चक्रवर्ती ने मारना चाहा लेकिन अनंगशरा ने पिता को उसे न मारने की प्रार्थना कर णमोकार मंत्र पढ़ते -२ शरीर को छोड़ा और स्वर्ग में देवी हुई पुन: वहां से निकलकर राजा द्रोणमेघ की विशल्या नामक कन्या हुई जिसके स्नान के जल से बड़े-२ रोग दूर हो जाते थे। राम रावण के युद्ध के समय लक्ष्मण को लगी अमोद्यविजया शक्ति इसी कन्या विशल्या के पास जाने से दूर हो गयी, यही विशल्या आगे लक्ष्मण की पट्टरानी हुई ।