अन्तराय नाम विघ्न का है। जो कर्म जीव के गुणों में बाधा डालता है उसको अन्तराय कर्म कहते है। जैन आगम में दिगम्बर जैन साधु-साध्वी तथा व्रतीजनों की आहारचर्या में कदाचित् बाल, चींटी आदि पड़ जाने पर या मांस, हड्डी आदि अशुभ शब्दों का प्रयोग करने पर आने वाली बाधा अन्तराय है। यह दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य के भेद से पांच प्रकार का है।
ज्ञानावरणादि आठ कर्मों में से यह एक है। चार घातिया और चार अघातिया कर्म के भेदों में यह अघातिया कर्म के अन्तर्गत आता है। इन आठ कर्मों को नष्ट करने के बाद ही मुक्त अवस्था प्राप्त होती है।