अकालमृत्यु का अपरनाम कदसीघात मरण है।
विष खा लेने से, वेदना से, रक्त का क्षय होने से, तीव्र भय से, शास्त्र घात से, संक्लेश की अधिकता से, आहार और श्वासोच्छ्वास के रूक जाने से आयु क्षीण हो जाती है इस प्रकार से जो मरण होता है वह अकालमरण या कदलीघातमरण है।
गोम्मटसार जीवकाण्ड की गाथा में कहा है-
विषवेयणरत्थक्खय भयसत्तग्गहणं संकिलेसेहिं ।
उस्सासाहाराणं णिरोहदे छिज्जदे आऊ ।।
आज वर्तमान में भूकम्प, एक्सीडेंट आदि अनेक दुर्घटनाएं होती हैं जिसमें अनेक व्यक्ति अकालमृत्यु को प्राप्त कर लेते है। इस अकालमृत्यु को मन्त्र, जाप्य, अनुष्ठान, पूजा-विधान आदि के द्वारा टाला भी जा सकता है जिसका एक उदाहरण शास्त्रों में पोदनपुर के राजा अरविन्द का आता है जिसने जैन मंत्री के कहने पर सात दिन का राज्य छोड़ कर सिंहासन पर अपनी मूर्ति रख स्वयं पूजादि अनुष्ठान किया और बिजली के सिंहासन पर गिरने से मूर्ति के टुकड़े-२ हो गया पुन: राजा का अभिषेक कर उन्हें सिंहासन पर बिठाया गया।