जीव, पुद्ग, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छह द्रव्य होते हैं। जीवादि छहों द्रव्यों को अवकाश (स्थान) देने में समर्थ द्रव्य को ‘आकाश’ कहते है। इस आकाश के दो भेद है- लोकाकाश और अलोकाकाश
जितने में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और कालद्रव्य पाये जाते हैं उसे लोकाकाश कहते हैं । इसके परे चारों तरफ अनन्तानंत अलोकाकाश है।
तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ मे आकाश द्रव्य के बारे में लिखा है- नित्यावस्थितान्य रूपाणि ।।४।।
आ आकाशादेकद्रव्याणि ।।६।। निष्क्रिमाणिच ।।७।। आकाशस्यावगाह:।।८।। आकाश द्रव्य नित्य अवस्थित और अरूपी है। एक अखण्ड द्रव्य है। निष्क्रिय है। अवगाह न देना इसका उपकार है।