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List of Jambudweep Tirth Temples

October 19, 2022जैन तीर्थjambudweep

कमल मंदिर

 

कमल मंदिर में विराजमान कल्पवृक्ष भगवान महावीर की अतिशयकारी, मनोहारी एवं अवगाहना प्रमाण सवा दस फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा 

सर्वप्रथम फरवरी सन् 1975 में इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा होने के बाद ही क्षेत्र का विकास प्रगति को प्राप्त हुआ और आज भी जम्प ही नहीं अपितु पूरे हस्तिनापुर में तीर्थ विकास के प्रशंसनीय कार्य तीव्रगति के साथ सम्पन्न हो रहे हैं। यहाँ भक्तगण छत्र चढ़ाकर अथवा दीपक जलाकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

 

 


जम्बूद्वीप रचना

सन् 1965 में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चातुर्मास के मध्य जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परमपूज्य 105 गणिनीप्रमुख आर्थिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी को विंध्यगिरि पर्वत पर भगवान बाहुबली के चरण सानिध्य में पिण्डस्थ ध्यान करते-करते मध्यलोक की सम्पूर्ण रचना, तेरहद्वीप का अनोखा दृश्य ध्यान की तरंगों में दिखाई दिया। पुनः दो हजार वर्ष पूर्व के लिखित तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार आदि ग्रंथों में उसका ज्यों का त्यों स्वरूप देखकर वह रचना कहीं धरती पर साकार करने की तीव्र भावना पूज्य माताजी के हृदय में आई और उसका संयोग बना हस्तिनापुर में।

 

 

 

तीन मूर्ति मंदिर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तेरहद्वीप मंदिर

जम्बूद्वीप तीर्थ पर अनूठी कृतियों का संगम अद्भुत प्रस्तुति के साथ अति विशिष्ट जिनमंदिरों के रूप में देखा जा सकता है। इन्हीं में एक है-तेरहद्वीप जिनालय |
जैन भूगोल के लगभग समग्र स्वरूप को प्रदर्शित करने वाली इस रचना का निर्माण होना पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी का एक दिव्य स्वप्न था, जो 27 अप्रैल से 2 मई 2007 के मध्य 5 दिनों तक आस्था चैनल पर सीधे प्रसारण के साथ सम्पन्न हुए भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सवपूर्वक साकार हुआ। इस रचना में भक्तों को मध्यलोक में स्थित 13 द्वीप के 458 अकृत्रिम जिनमंदिर, पंचमेरु पर्वत, 170 समवसरण, अनेक देवभवन आदि में विराजमान 2127 जिनप्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। साथ ही विभिन्न सागर, नदी, यो पर्वत, भोगभूमि, कल्पवृक्ष आदि की अवस्थिति के संदर्भ में भी जानकारी प्राप्त होती है। यह रचना पूज्य माताजी द्वारा 2200 वर्ष प्राचीन तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार आदि ग्रंथों के गहन अध्ययन के आधार पर निर्मित कराई गई है। विश्व में प्रथम बार निर्मित इस अद्भुत रचना के दर्शन करके भक्तजन अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति भी करते हैं।

ऋषभदेव कीर्ति स्तम्भ

 

शान्ति, कुन्थु ,अरहनाथ मंदिर

 

 

वासुपूज्य मंदिर

पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी की प्रेरणा से इस प्रतिमा को सन् 1998 में विराजमान किया गया ।

 

ओम मंदिर

 

चौबीसी मंदिर

आदिनाथ मंदिर

 

 

 

 

 

 

 

 

सहस्रकूट मंदिर

1008 जिन प्रतिमाओं से संयुक्त सहस्त्रकूट मंदिर 

बीस तीर्थंकर मंदिर

विद्यमान बीस तीर्थंकर मंदिर में विराजमान प्रतिमाएँ 

 

 

 

 

नवग्रह मंदिर

 

उत्तर भारत में प्रथम बार निर्मित नवग्रहशांति जिनमन्दिर, जहाँ 9 कमलासनों पर विराजमान हैं नवग्रहों के अरिष्टको दूर करने वाले नव तीर्थंकरों की अष्टधातु से बनी प्रतिमाएँ | 

 

 

 

तीन लोक रचना

जम्बूद्वीप तीर्थ पर विश्व में प्रथम बार निर्मित एक और रचना है, जिसे ‘तीनलोक’ कहा जाता है। इस रचना में जैनधर्म के अनुसार अधोलोक, मध्यलोक एवं ऊर्ध्वलोक को अवस्थिति प्रदर्शित की गई है, जिसमें अधोलोक में भवनवासी, व्यंतर आदि देवों के भवन, , जिनमंदिर तथा 7 नरक व वहाँ उपस्थित नारकियों की दशा, मध्यलोक में पंचमेरु पर्वत आदि तथा ऊर्ध्वलोक में 16 स्वर्ण व स्वर्ग में रहने वाले देवों का ऐश्वर्य, भव्य जिनमंदिर, नवरीवेयक, नव अनुदिश, पंच अनुत्तर व सबसे ऊपर सिद्धशिला आदि प्रदर्शित किये गये हैं। इस रचना में विराजमान की गई समस्त प्रतिमाएं पंचकल्याणकपूर्वक प्रतिष्ठित हैं। “अच्छे कार्यों से शुभ फलस्वरूप स्वर्ग व मोक्ष का वैभव एवं बुरे कार्यों के अशुभ फलस्वरूप नरक को बेदना”, इस रचना के दर्शन से प्रत्येक जनमानस को यही संदेश प्राप्त होता है। विशेषता इस रचना में लिफ्ट के द्वारा सेकेण्डों में सिद्धशिला तक पहुँचा जा सकता है।

 

 

अष्टापद मंदिर

त्रिकाल चौबीसी तीर्थकर प्रतिमाओं से संयुक्त अष्टापद जिनमन्दिर 
अष्टापद जिनमन्दिर में 72 जिनालयों से युक्त पर्वत का दृश्य

 

 

 

 

विश्वशान्ति त्रिमूर्ति मंदिर

 

तीर्थंकर जन्मभूमियों के इतिहास में यह प्रथम अवसर था, जब भगवान शांतिनाथ कुंथुनाथ-अरहनाथ जैसे तीन-तीन पद के धारी महान तीर्थंकरों की साक्षात् जन्मभूमि हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप स्थल पर ग्रेनाइट पाषाण की 31-31 फुट उत्तुंग तीन विशाल प्रतिमाएं अत्यन्त मनोरम मुद्राकृति में निर्मित करके राष्ट्रीय स्तर के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ विराजमान की गई। 11 फरवरी से 21 फरवरी 2010 तक यह आयोजन भव्यतापूर्वक सम्पन्न हुआ, जिसमें देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर पुण्य अर्जित किया। समापन के तीन दिवसों में तीनों भगवन्तों का ऐतिहासिक महामस्तकाभिषेक महोत्सव भी सम्पन्न हुआ।


ध्यान मंदिर

 

ध्यान मंदिर में विराजमान 24तीर्थंकर से संयुक्त “ह्रीँ”बीजाक्षर की प्रतिमा 

रक्षा बंधन मंदिर 

 

सप्तऋषि मंदिर

 

 

 

सरस्वती मंदिर 

 

 

 

 

 

 

राजा श्रेयांस महल

 

हस्तिनापुर में राजा श्रेयांश द्वारा भगवान आदिनाथ को इक्षुरस का प्रथम आहार दान |

अखण्ड ज्योति मंदिर

 

जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति रथ के भारत भ्रमण के पश्चात्
28 अप्रैल 1985 को केन्द्रीय रक्षा मंत्री श्री पी.वी.
नरसिम्हाराव द्वारा स्थापित अखण्ड ज्ञान ज्योति

आर्यिका रत्नमति कीर्तिस्तम्भ

 

 

(पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माता जी की गृहस्थावस्था की माँ मोहिनी देवी , जिन्होंने सन्न 1971 में आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर 13वर्ष तक कठोर तपस्या की और 15जनवरी 1985  को सल्लेखनाविधि पूर्वक समाधिमरण प्राप्त किया |) 

 

 

 

 

जम्बूद्वीप पुस्तकालय एवं गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ

 

जम्बूद्वीप पुस्तकालय एवं गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ शिक्षाप्रेमियों के लिए यहाँ लगभग 15 हजार पुस्तकों के भण्डारण का ‘जम्बूद्वीप पुस्तकालय’ है तथा ‘गणिनी ज्ञानमती शोध पीठ’ के द्वारा विभिन्न जैन साहित्य पर शोधकार्य चलता है। हजारों मुद्रित ग्रंथों के साथ-साथ उक्त पुस्तकालय में अनेक प्राचीन प्राकृत एवं संस्कृत की पांडुलिपियाँ भी धरोहर के रूप में विद्यमान हैं।

 

 

 

 

 

 

सन्न 1974 से निरन्तर प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका ‘सम्यग्ज्ञान’

 

 

 

 

 

 

 

साहित्य बिक्री केन्द्र (संस्थान द्वारा प्रकाशित लगभग 250 ग्रंथ विशेष छूट पर प्राप्त होते हैं )

 

 

 

 

 

णमोकार महामंत्र बैंक 

 

 

पूज्य माताजी की प्रेरणा से सन् 1995 में स्थापित यह विशेष प्रकार का धार्मिक बैंक है, जिसमें देशभर के भक्तों द्वारा बैंक की योजना के अनुसार णमोकार महामंत्र का लेखन करके मंत्र की कॉपियाँ जमा कराय जाती हैं। यहाँ पर भक्तों द्वारा प्रेषित करोड़ों मंत्र जमा हो चुके हैं। बैंक की योजनानुसार प्रत्येक वर्ष शरदपूर्णिमा के शुभ अवसर पर एक लाख बार णमोकार महामंत्र लिखने वाले महानुभावों को प्रमाणपत्र के साथ हीरक पदक, पचास हजार बार मंत्र लिखने वाले महानुभावों को स्वर्ण पदक एवं पच्चीस हजार मंत्र लिखने वाले महानुभावों को रजत पदक से सम्मानित किया जाता है।

 

संस्थान के स्वर्णिम इतिहास की एक झलक

जम्बूद्वीप परिसर में अनेकानेक निर्माणों के साथ-साथ इस संस्थान द्वारा संचालित सर्वतोमुखी कार्य सदैव राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के रहे हैं। यहाँ स्थापित वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला के द्वारा दो सौ से अधिक ग्रंथों का लाखों की संख्या में प्रकाशन हुआ है तथा सन् 1974 से ‘सम्यग्ज्ञान’ मासिक पत्रिका का निरन्तर प्रकाशन चल रहा है। पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं, संगोष्ठी, सेमिनार, सम्मेलन, शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर तो सन् 1975 से ही आयोजित होते रहे हैं, उनके अतिरिक्त पूज्य माताजी की प्रेरणा से समय-समय पर बहुत सारे प्रभावनात्मक कार्य इस संस्था ने किये हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कार्यकलाप यहाँ प्रस्तुत हैं –
1.अक्टूबर सन् 1981 में जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर स्थल पर ‘जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति सेमिनार’ का आयोजन।
2. सन् 1982 से 1985 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा उद्घाटित ‘जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति रथ’ का भारत भ्रमण ।
3.अप्रैल सन् 1985 में जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर स्थल पर ‘जैन गणित और त्रिलोक विज्ञान’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन।
4.सन् 1987 में जम्बूद्वीप के पीठाधीश एवं गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के प्रमुख शिष्यों में एक क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज की जम्बूद्वीप स्थल पर क्षुल्लक दीक्षा।
5.सन् 1989 में जम्बूद्वीप स्थल पर पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की पथ-अनुगामिनी एवं आज्ञाकारी शिष्या ब. माधुरी जैन की आर्यिका दीक्षा|
6.सन् 1992 में जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में ‘अंतर्राज्यीय चरित्र निर्माण संगोष्ठी’ का आयोजन।
7. सन् 1993 में संस्थान द्वारा अयोध्या में ‘भारतीय संस्कृति के आद्यप्रणेता भगवान ऋषभदेव विषय’ पर संगोष्ठी का आयोजन।
8.अक्टूबर सन् 1995 में जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में ‘गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती साहित्य संगोष्ठी’ का आयोजन।
9.अक्टूबर 1997 में 4 से 13 अक्टूबर तक राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा उद्घाटित ‘चौबीस कल्पदुम महामण्डल विधान के ऐतिहासिक
आयोजन ।
10. मार्च-अप्रैल 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा तालकटोरा स्टेडियम-दिल्ली से ‘भगवान ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार ‘रथ’ का भारत भ्रमण हेतु उद्घाटन।
11. अक्टूबर 1998 में जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में ‘राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन’ का आयोजन।
12. फरवरी 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लालकिला मैदान दिल्ली में  भगवान ऋषभभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष का उद्घाटन |
13 जून 2000 में जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में ‘जैनधर्म  की प्राचीनता’ विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन |
14. सन् 2000 में यू.एन.ओ. न्यूयार्क (यू.एम.ए.) में आयोजित विश्वशान्ति शिखर सम्मेलन में जम्बूद्वीप – हस्तिनापुर की ओर से संस्थान के अध्यक्ष कर्मयोगी ब्र.रवीन्द्र कुमार जैन द्वारा धर्माचार्य के रूप में प्रतिनिधित्व |
15 फरवरी 2001 में प्रथम तीर्थंकर भगवान अपमदेव की दीक्षा एवं केवलज्ञान भूमि प्रयाग इलाहाबाद में ‘तीर्थकर ऋषभदेव तपस्थली तीर्थ’ का ऐतिहासिक नवनिर्माण |
16.सन् 2003-2004 में मंगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) बिहार में ‘नंद्यावर्त महल तीर्थ’ का भव्य निर्माण एवं ‘भगवान महावीर ज्योति रथ’ का भारत भ्रमण हेतु प्रवर्तन |
17. सन् 2005-2007 में भगवान पार्श्वनाथ जन्मकल्याणक तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव’ का 6 जनवरी 2005 को बनारस में उद्घाटन एवं 4 जनवरी 2008 को अहिछत्र में समापन |
18. सन् 2008 में 21 दिसम्बर को जम्बूद्वीप स्थल पर पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल द्वारा ‘विश्वशांति अहिंसा सम्मेलन’ का उद्घाटन |
19. अगस्त सन् 2009 में संसद भवन दिल्ली में गृहमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा उद्घाटित “श्री जे.के.जैन अभिनंदन समारोह” का आयोजन।
20. फरवरी सन् 2010 में जम्बुद्वीप स्थल पर ‘जम्बूद्वीप रजत जयंती महोत्सव’ के साथ भगवान शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरहनाथ की 31-31 फुट उत्तुंग विशाल खड्गासन प्रतिमाओं का ‘अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं तीर्थंकरत्रय महामस्तकाभिषेक महोत्सव’ तथा परिसर में नवनिर्मित ‘तीनलोक रचना’ का भव्य उद्घाटन समारोह।


 

भगवान ऋषभदेव एवं ब्राह्मी, सुन्दरी

 

युग की आदि में भगवान ऋषभदेव अपनी सुपुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी को अंक लिपि और अक्षर लिपि का ज्ञान प्रदान करते हुए |

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जम्बूद्वीप स्थल पर यात्रियों के लिए उपलब्ध सुविधाएँ

यात्री सुविधा

हस्तिनापुर तीर्थ में जम्बूद्वीप स्थल के पूरे परिसर में संस्थान द्वारा कार्यालय का संचालन किया जाता है। यहाँ पात्रियों के ठहरने हेतु आधुनिक सुविधायुक्त 200 कमरे, 50 से अधिक डीलक्स फ्लैट एवं अनेकों गेस्ट हाउस (बंगले बने हुए हैं। इसके साथ ही यहाँ निःशुल्क भोजनालय है जहाँ यात्रियों को सुविधापूर्वक शुद्ध भोजन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त 2 किमी. दूर हस्तिनापुर सेन्ट्रल टाउन में सरकारी अस्पताल, डाकखाना, बाजार, इंटरकॉलेज तथा अन्य शिक्षण संस्थाएं आदि सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध है।

 

 

हस्तिनापुर कैसे पहुँचे?

भारत की राजधानी दिल्ली से 110 किमी. पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जिला मेरठ से 40 किमी. दूर हस्तिनापुर तीर्थ है। राजधानी दिल्ली से हस्तिनापुर के लिए अंतर्राज्यीय बस अड्डे अथवा आनंद बिहार बस अड्डे से उत्तरप्रदेश रोडवेज तथा डी.टी.सी. बसों की निरंतर सेवा उपलब्ध है। मेरठ से भी प्रति आधे घंटे के अंतराल से जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर पहुंचने हेतु रोडवेज की बसें सुलभता के साथ उपलब्ध रहती हैं। ‘जम्बूद्वीप’ के नाम से ये बसें चलती हैं जो सीधे जम्बूद्वीप के सामने ही रुकती हैं और जम्बूद्वीप से ही मेरठ, दिल्ली, तिजारा आदि यात्रा हेतु बसें उपलब्ध रहती हैं। दिल्ली और मेरठ के बीच रेल सेवा भी है। देश-विदेश के यात्रीगण हस्तिनापुर पधारकर इस धरती का स्वर्ग मानी जाने वाली ‘जम्बूद्वीप रचना’ के दर्शन करें और मानसिक शांति का अनुभव करते हुए मनवांछित फल प्राप्त करें, यही मंगलकामना है।
कहते हैं कि सन् 1948 में स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने हस्तिनापुर सेन्ट्रल टाउन की पुनस्थापना की थी। वहाँ से पूर्व दिशा में 2 किमी. जाकर मीरापुर रोड से बाई ओर मुड़ने पर जैन तीर्थ का परिसर प्रारंभ होता है। जहाँ दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी जैन समाज की संस्थाएं अपने-अपने मंदिर परिसरों में विभिन्न गतिविधियों का संचालन करती हैं। ऊंचे टीले पर निर्मित लगभग 200 वर्ष पुराना दिगम्बर जैन मंदिर यहाँ का सबसे प्राचीन मंदिर है। वर्तमान में इस संस्था के द्वारा भी नंदीश्वर द्वीप, समवसरण एवं कैलाशपर्वत आदि अनेक मंदिरों का निर्माण कर यात्रियों के लिए आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। प्राचीन मंदिर से ही आधा फर्लांग आगे नसिया मार्ग पर ‘जम्बूद्वीप’ नामक तीर्थ है।

तीर्थंकर जन्मभूमि विकास

पूज्य माताजी की प्रेरणा से हस्तिनापुर का यह संस्थान ‘तीर्थंकर जन्मभूमि विकास समिति’ के माध्यम से 24 तीर्थंकर भगवन्तों की 16 जन्मभूमि तीर्थों के विकास का कार्य कर रहा है। वर्तमान में 9वें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंतनाथ की जन्मभूमि काकंदी (निकट गोरखपुर- उ. प्र.) तथा अयोध्या में भगवान ऋषभदेव की वास्तविक जन्मभूमि प्रथम टोंक का विकासकार्य किया गया है। आगे भी तीर्थकर जन्मभूमियों के विकास हेतु समिति प्रयासरत है।


पीठाधीश भवन

 

 

उत्तर भारत में प्रथम बार जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा पीठाधीश पद की स्थापना की गई। जिसके प्रथम पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज द्वारा जम्बूद्वीप का अनुशासित संचालन किया जा रहा है। इस पीठ की स्थापना 2 अगस्त 1987 को हुई थी। इसीलिए जम्बूद्वीप स्थल पर पीठाधीश भवन का निर्माण हुआ है।


चक्रवर्ती भोजनालय


मनोरंजन के साधन

आबाल-वृद्ध सभी की रुचि का ध्यान रखते हुए संस्थान द्वारा इस परिसर के अन्दर हस्तिनापुर के प्राचीन इतिहास से संबंधित झाँकियाँ, चित्रप्रदर्शनी, हंसी के फव्वारे, जम्बूद्वीप रेल, झूले तथा मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध कराये गये हैं।
हरे भरे लॉन, फुलवारी एवं सुन्दर पार्क में बैठकर जहाँ लोग प्राकृतिक सौंदर्य का रसपान करते हैं, बच्चे खेलते हुए स्वयं पुष्पवाटिका का रूप दर्शाते हैं, वहीं होली, दीवाली, कार्तिकपूर्णिमा, अक्षयतृतीया, शरदपूर्णिमा आदि विशेष मेलों के अवसर पर दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदाय के संगठन का परिचय भी प्राप्त होता है। ‘जम्बूद्वीप महामहोत्सव’ के नाम से प्रति पाँच वर्षों में यहाँ विशेष उत्सव सम्पन्न होता है।

झाँकियाँ

जलपरियाँ

 

 

 

ऐरावत हाथी जिस पर बैठकर भक्तजन जम्बूद्वीप की परिक्रमा करते हैं |

 

 

 

 

 

 

नौका विहार से भक्तजन करते हैं जम्बूद्वीप की प्रदक्षिणा

 

 

झूले

 

 

 

 

रेल

 

 


प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर प्रवचन हॉल

 

प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर प्रवचन हॉल : –   1000 दर्शकों की बैठक क्षमता से युक्त विशाल ऑडिटोरियम

जम्बूद्वीप परिसर का दृश्य

 

 

 

 

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