

जिनदेव के मुख से खिरी, दिव्यध्वनी अनअक्षरी। 
चामर छन्द जैन साधु चित्त सम, पवित्र नीर ले लिया। 
केशरादि को घिसाय, स्वर्ण पात्र में भरी।
चन्द्ररश्मि के समान, धौत स्वच्छ शालि हैं। 
मोगरा गुलाब चंप केतकी चुनायके । 
लड्डुकादि व्यंजनों से, थाल को भराय के। 
दीप में कपूर ज्वाल, आरती उतारहूँ। 
धूप ले दशांग, अग्निपात्र में हि खेवते।
सेब संतरा अनार, द्राक्ष थाल में भरें। 
वारि गंध शालि पुष्प, चरु सुदीप धूप ले। 