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अनुपम त्यागमूर्ति पन्नाधाय

February 11, 2020कविताएँIndu Jain

अनुपम त्यागमूर्ति पन्नाधाय



इतिहास के पृष्ठ विविध गुणों, विशेषताओं से विभूषित नारियों यथा वीरांगनाओं से सुसज्जित हैं परन्तु त्यागमूर्ति, स्वामिभक्त पन्नाधाय का उदाहरण भारत में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में अनोखा, अतुलनीय, अद्वितीय व अनुकरणीय है।

लगभग पांच शती पूर्व राजस्थान के परमवीर योद्धा मेवाड़ाधिपति महाराजा संग्रामसिंह (राणा सिंह) की विशाल सेना, बाबर की सेना पर भारी पड़ रही थी। परन्तु जब मुगल सेना के पास तोपखाना पहुंच गया तब तो तोपों से निकले आग के गोलों से असंख्य राजपूत सैनिक हताहत हो गए, उनमें भगदड़ मच गई और वे परास्त हो गए।

घायल राणा सांगा ने प्रतिज्ञा की कि मुगलों को परास्त करने के पूर्व वे चित्तौड़गढ़ में प्रवेश नहीं करेंगे तथा उन्होंने इसका आजीवन निर्वाह भी किया। द्वितीय युद्ध से पूर्व ही एक सहयोगी ने विष देकर उनकी हत्या कर दी। महाराणा संग्राम सिंह के पश्चात् उनके पुत्र रतनसिंह राजगद्दी पर आसीन हुए। उन दिनों मेवाड़ में बाहर की अपेक्षा भीतरी शत्रु प्रबल थे। अल्प काल में ही एक संबंधी सूरजमल राय ने रतनसिंह की भी हत्या कर दी।

तत्पश्चात् राणा सांगा की दूसरी रानी कर्मवती के बड़े पुत्र विक्रमादित्य को शासन की बागडोर सौंपी गयी, जो अदूरदर्शी, अहंकारी एवं अयोग्य था। परिणामत: अनेक सामन्त उनके विरूद्ध हो गए। राज्य में अराजकता की स्थिति आ गई। सामन्तों ने रूष्ट होकर बनवीर को आमंत्रित कर लिया। बनवीर राणा सांगा के बड़े भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र था। वह साहसी एवं युद्ध कला में निपुण तो था परन्तु प्रकृति से क्रूर और दुष्ट था।

बनवीर येन—केन—प्रकारेण मेवाड़ की राजगद्दी हथियाना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने एक षडयन्त्र की रचना की जिसकी क्रियान्विति के लिए हाथ में नंगी तलवार लेकर वह विक्रमादित्य के कक्ष में पहुंचा और उनकी हत्या कर दी। तत्काल उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंधा कि जब तक विक्रमादित्य का छोटा भाई उदयसिंह जीवित रहेगा, तब तक वह चित्तौड़गढ़ पर निर्बाध शासन नहीं कर सकेगा।

राणा सांगा के वंश का विनाश करने हेतु विक्रमादित्य के रक्त से सनी तलवार लेकर बनवीर उदयसिंह के महल की दिशा में चल पड़ा। बनवीर के षड़यंत्र से अनभिज्ञ पन्ना धाय ने राजकुमार उदयसिहं तथा अपने पुत्र चन्दन को भोजनोपरान्त सुला दिया। दोनों गहरी नींद में थे और पन्ना उन दोनों को वात्सल्य परिपूर्ण नेत्रों से निहार रही थी।

उसी समय झूठी पत्तल उठाने वाला बारी घबराता हुआ आया और उसने पन्ना को बताया कि बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी है तथा रक्तसनी तलवार लेकर इसी दिशा में आ रहा है। प्रत्युत्पन्नमति पन्ना ने समझ लिया कि अब उदयसिंह की बारी है।

उसे महारानी कर्मवती के अंतिम शब्द स्मरण हो आए — ‘ आज से उदयसिंह तुम्हारा ही बेटा है। मेवाड़ के इस सूर्य की रक्षा करना। ‘ दूरदर्शी पन्ना ने त्वरित गति से अपना कर्तव्य निर्धारित कर लिया। उसने बारी से कहा, ‘‘ आज हमें मेवाड़ के भावी महाराणा की प्राण रक्षा करनी है। तुम उदयसिहं को अपने टोकरे में लिटाकर, पत्तलों से ढक कर, गुप्त द्वारा से वीरा नदीं के तट पर पहुंचो और मेरे आने की प्रतिक्षा करना।

पन्ना ने उदयसिंह के वस्त्राभूषण उतारकर चंदन के वस्त्र पहनाकर टोकरी में लिटा दिया। खाने—पीने की सामग्री साथ रखकर बारी को विदा किया। तत्पश्चात् पन्ना के मन में दूसरा विचार आया कि उदयसिंह को नहीं पाकर बनवीर मुझे मार देगा जिससे दोनों बच्चे अनाथ हो जायेंगे तथा उदयसिंह की खोज करवाकर वह उसकी भी हत्या कर देगा।

उसने दृष्टि घुमाई और उसे दूसरे पलंग पर लेटा अपने हृदय का हार चंदन दिखाई दिया। पन्ना ने हृदय पर पत्थर रखकर अपने लाडले को राजसी वस्त्राभूषण पहना कर राजकुमार उदयसिंह की शैया पर लिटा दिया और चादर ओढ़ा दी। वह एक ओर खड़ी बनवीर की प्रतीक्षा करने लगी।

अल्पकाल में ही बनवीर ने धड़धड़ाते हुए प्रवेश कर कड़क स्वर में पूछा, ‘उदयसिंह कहां है?’ पन्ना सिर झुकाए खड़ी रही। बनवीर ने चिल्लाकर कहा, जल्दी बता अन्यथा तेरा काम तमाम कर दूंगा। पन्ना ने अपनी अंगुली, निद्रामग्न अपने लाल की ओर उठा दी।

Tags: Jain Poetries
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