Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

कभी कहीं भी दुर्घटना न हो, पैदल करते हुए विहार

July 8, 2017स्वाध्याय करेंjambudweep

कभी कहीं भी दुर्घटना न हो,

पैदल करते हुए विहार,

संत तो समाज के गौरव हैं,

उनकी सुरक्षा पर करो विचार।


ज्यों — ज्यों विज्ञान उन्नति करता गया, भौतिकवादी साधनों का उत्पादन भी बढ़ता गया। यातायात के साधनों में भी कमाल की बढ़ोत्तरी हुई। गावों की गलियाँ , शहरों की सड़के तथा समस्त राजमार्गों पर वाहन चीटियों की तरह रेंग रहे हैं। वाहन की तरह पदयात्रा का भी चलन अत्यधिक होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में जिस तरह से वाहनों के लिए वन—वे ट्रेफिक किया गया है, ठीक उसी तरह से जनसंख्या का विस्फोट यू ही होता रहा तो एक दिन इन्सानों के लिए भी सरकार को वन—वे ट्रेफिक कानून करना पडेगा। वाहन की संख्या से जनसंख्या या जनसंख्या से वाहन की संख्या कम—ज्यादा है या बराबर है, मैं नहीं जानता। किन्तु इतना अवश्य जानता हूँ कि दुर्घटना वाहनों के कारण अत्यधिक होती जा रही है। ओवरटेकिंग के कारण, ड्राइवर द्वारा शराब पीने के कारण, रातभर गाड़ी चलाने के कारण, भोर के समय झपकी आने के कारण इत्यादि इत्यादि कारणों से प्रतिदिन दुर्घटनायें होती जा रही हैं। आजकल तो कई —कई जगह साधु सन्तों की दुर्घटनाओं में मौत की खबरें बार—बार सुनने को मिल रही हैं, जो अत्यन्त ही चिन्ता का विषय है। मैने पूर्व में भी एक सुझाव दिया था कि राष्ट्रीय स्तर पर कमेटी बनाई जाये जो गुरूदेवों के विहार के लिए ऐसे मार्गों का चयन करें, जो राजमार्गों के समकक्ष गाँवों के भीतर से होकर गुजरता हो। इस दिशा में समुचित व्यवस्था सम्पूर्ण समाज करें। एक गाँव से दूसरे गाँव तक श्रावक —श्राविकाओं का छोटा मोटा समूह अवश्य गुरूजनों के साथ में जायें। जिन संतों के कारण जैन देवस्थान, पेढ़ियों, श्री जैन संघों की तिजोरियाँ भरी हुई रहती है, उनके द्वारा विशेष रूप से एक संत सुरक्षा फंड स्थापित किया जाय। जिन संतों के एक इशारे पर हम लाखों करोड़ों के चढ़ावे बोलते हैं, उनकी सुरक्षा के लिए हम पहल न करें तो यह हमारी कमजोरी साबित होगी। अब मैं संतों से खास तौर से क्षमा मांगते हुए गुजारिश करना चाहूँगा कि आप सूर्योदय के पहले विहार करना शुरू न करें एक दिन में १५ से २० कि.मी. से अधिक का विहार न करें। साथ ही विगत चातुर्मास स्थल से भावी चातुर्मास स्थल तक पहुँचने की सीमित दूरी तय करके ही अगले चातुर्मास स्थल का निर्धारण कर श्रीसंघ को स्वीकृति प्रदान करें। इसलिए मैं करबद्ध रूप से जैन समाज के श्रावक— श्राविकाओं से प्रार्थना करूँगा वे किसी पर अनर्गल, बेबुनियाद आरोप प्रत्यारोप कर भावावेश में एस.एम.एस, वाट्स अप, फेसबुक व अन्य सोशल मिडिया पर प्रचार प्रसार न करें। मुझे पूरा यकीन है कि हम जितना समय सोशल मिडिया पर दुर्घटना के कारणों की बेतुकी खबरों का प्रचार प्रसार में लगाते हैं, उससे थोड़ा कम समय देकर यदि संतो की सुरक्षा की व्यवस्था में लगायेंगे, तो मेरा दावा है कि एक भी संत दुर्घटना के शिकार नहीं होने पायेंगे। संत हमारे मार्गदर्शक हैं। जिनशासन के ध्वज वाहक हैं। हमारे भवोभव के उद्धारक हैं। चुस्त क्रिया, पदविहार करने वाले इन त्यागी आत्माओं की सुरक्षा करना, न केवल हमारा फर्ज है बल्कि हर श्रावक का धर्म होना चाहिये।
जिनेन्दु अहमदाबाद,१८ जनवरी, २०१५‘
 
Previous post साधु की दिनचर्या! Next post मंत्र विद्या : जैन दृष्टि!
Privacy Policy