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कषायों का बोझ

February 11, 2017कहानियाँjambudweep

कषायों का बोझ


एक आदमी था। वह एक महात्मा के पास गया और बोला—महाराज, मैं ईश्वर के दर्शन करना चाहता हूँ , वर दीजिये। महात्मा ने कहा— कल सवेरे आना। अगले दिन वह आदमी महात्मा के पास पहुँचा तो महात्मा ने उसे पांच—पांच पत्थर दिये और कहा— इन्हें एक गठरी में बांधकर सिर पर रखो और सामने के पहाड़ की चोटी पर चलो। आदमी ने पत्थर उठा लिए और चढ़ाई शुरु कर दी। कुछ ही कदम चलने पर वह थक गया बोला— महाराज अब नहीं चढ़ा जाता। महाराज अब नहीं चढ़ा जाता। महात्मा ने कहा— अच्छा एक पत्थर फैक दो । आदमी ने गठरी खोल कर एक पत्थर फैक दिया। बोझ थोड़ा हल्का हो गया, पर कुछ कदम चलते ही वह फिर परेशान हो गया। उसने महात्मा से कहा तो उसने फिर एक पत्थर फिकवा दिया।इसके बाद तीसरा, फिर चौथा, फिर पांचवां पत्थर और पिंकवा दिया और इस तरह वह पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया। चोटी पर खड़े होकर उस आदमी ने कहा महाराज हम ऊपर आ गये, अब तो ईश्वर के दर्शन कराईये। महात्मा ने कहा— भले आदमी! जिस प्रकार पांच—पांच सेर के पत्थर सिर पर रखकर तुम पहाड़ पर नहीं चढ़ सके ठीक उसी तरह प्रभु के दर्शन के लिये अपने मन से काम , क्रोध, लोभ, मोह का बोझ उतारना होगा तभी ईश्वर के दर्शन संभव है। उस आदमी की समझ में महात्मा की बात अच्छी तरह आ गई कि यह सच है कि कषायों का बोझ कभी भी दिल पर नहीं रखना चाहिये। ये जिन्दगी में पतन का कारण है।

ज्योति वेद, इन्दौर
Tags: Jain Stories
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