आज जबकि मनुष्य हिंसा के कुचक्र में फसकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहा है। तब हिंसक मनोवृत्ति से निवृत्ति के उपायों पर चिन्तन मनन की महती आवश्यकता महसूस होती है। वैसे तो पूरा पर्यावरण विज्ञान जैनधर्म की सूक्ष्मतम अहिंसा का समर्थक है फिर भी धर्म और विज्ञान के अन्तर्संबंधों पर समुचित अनुसंधान अभी तक नहीं हो सकता है। जैनधर्म में अहिंसा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है परन्तु यह दुखद तथ्य है कि वर्तमान में अहिंसा को सर्व स्वीकार्य बनाने में अहिंसक अनुयायियों का योगदान अत्यल्प है। सूक्ष्मतम अहिंसा का नित प्रति ध्यान रखने वाले भी जाने—अनजाने बड़े बड़े जीवों की हत्या के लिये उत्तरदायी हो रहे हैं। कीड़ों की हत्या एक ऐसा ही विषय है जिससे जैन समाज का एक बहुत बड़ा भाग जुड़ा हुआ है। प्रस्तुत आलेख में कीट हत्या निरोध के लक्ष्य से वैज्ञानिक तथा र्धािमक संस्तुतियाँ दी गयी हैं जिनके शोध एवं संवद्र्धन से अहिंसा महिमा मंडित हो सकती है।
कीट हत्या के कारण
प्रकृति में कीड़ों का अपना विशिष्ट महत्व है और प्रकृति में छेड़छाड़ करने से कई कीड़े हमारे लिये हानिकारक सिद्ध हुए हैं जिससे उनको मारने के लिये नित नूतन कीटनाशकों के आविष्कार हुए हैं।
(अ) वैज्ञानिक कारण
१. बहुत से पेड़ पौधों के लिये कई कीड़े बहुत घातक सिद्ध हुए हैं। अत: फसलों की सुरक्षा तथा अधिक उपज पाने के लिये कीड़ों को मारा जाता है।
२. कीटनाशकों को बढ़ते दुष्प्रभावों को देखते हुए आनुवांशिक अभियांत्रिकी से ऐसे बीज विकसित किये जा रहे हैं जिनसे कीड़ों को नष्ट किया जा सकता है। बी. टी. कॉटन एक ऐसा ही नया कपास का बीज है जिसमें एक घातक जीवाणु का जीन डाल दिया गया है जिससे इसके पौधों में ऐसा जहर पैदा होता है जिन्हें खाकर कीड़े मर जाते हैं।
Invention Intelligence, Jan-Feb. 2001, p. 6, The Cotton Corporation has been alfered by biotechnology to incorporate Bt gene from the bacterium bacillus thuringiensis (Bt.)Boll worms and other lepidopteran insects when feed on this toxic protein of cotton plant meet their end and pest population remains checked. Adoption for Bt toxin protien in pests can also evolve and if super resistant strain of pestsdevelops then worse condition in agriculture will be repeated.
३. मच्छर, मक्खी, तिलचट्टा, जूँ आदि कीड़े मनुष्यों और पशुओं के लिये दुखदायी रहे हैं अत: इन्हें खत्म करने के लिये रसायनों का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है।
(ब) धार्मिक कारण
१.अब अधिकांश जैनों का मुख्य लक्ष्य अधिकाधिक अर्थ संचय हो गया है जिसमें साध्य साधन शुद्धि, जीवदाया तथा करुणा का ध्यान विस्मृत हो गया है फलस्वरूप अर्थोपार्जन के लिये जैन व्यापारी भी कीटनाशकों के व्यापार में जुड़ गये हैं।
२. जिस प्रकार से पर्यावरण वैज्ञानिकों की सलाह को अनसुना करके वृहद् वैज्ञानिक वर्ग विज्ञान का दुरुपयोग कर नित नूतन जहरीले रसायनों द्वारा कीड़ों को खत्म करने के नाम पर हवा, पानी में जहर फैला रहे हैं, उसी तरह सच्चे अहिसकों को दर किनार कर जैन समाज का बहुसंख्यक वर्ग कीट हत्या, पशु हत्या आदि पर एकदम मौन बैठा हुआ है जिससे सुबह शाम के पूजन पाठ के बीच में ना जाने कितने निर्दोष प्राणियों का कत्ल नि:संकोच हो रहा है।
३.प्रतिक्रियावादी, ऐकान्तिक,हिंसात्मक मनोवृत्ति प्रत्येक विकार के लिये जिम्मेदार होती है। अपनी सुविधा के लिये दूसरे पशु–पक्षियों, कीड़ों को मारने का काम सदा से होता रहा है। जीव हत्या को धर्म, विज्ञान तथा मनुष्य हित के नाम पर सही सिद्ध करने का प्रयास सदियों में हो रहा है और आज हिंसा के कारण ही फैली हिंसा की आग में घिरा मनुष्य यह नहीं सोच पा रहा है कि व्रूरता, आतंकवाद का मूलभूत कारण कत्लखानों, कीटनाशकों इत्यादि के द्वारा होने वाला प्राकृतिक असंतुलन है। यह अनभिज्ञता ही अन्य मूक प्राणियों तथा कीड़ों के कत्ल का कारण है।
कीट हत्या के हानिकारक प्रभाव
(अ) वैज्ञानिक प्रभाव—
१. पेड़ पौधों की ऐसी बहुत सी प्रजातियाँ हैं जो किसी ना किसी रूप में कीड़ों की प्रजातियों से जुड़ी हुई हैं। एक विशिष्ट पौधे के परागण (फूल से फल तथा बीज बनाने का महत्वपूर्ण चरण) में विशिष्ट कीट संलग्न रहता है। अत: एक विशेष कीट प्रजाति की समाप्ति के साथ ही उस पौधे की प्रजाति भी सदा के लिये समाप्त हो जाती है।विज्ञान प्रगति, अक्टूबर—९९, पृ. १३, जिस क्षेत्र में कीटनाशकों का प्रयोग अधिक होता है वहाँ परागण कराने वाले कीड़ों की कमी हो जाती है और फसल की उपज पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
२. कीट वर्ग जीवन के विकास का एक महत्वपूर्ण सोपान है और वैज्ञानिकों के अनुसार इसी सोपान से गुजरकर ही विभिन्न विकसित जातियों, पशुओं और मनुष्यों का विकास हुआ है। इसके अतिरिक्त जैव विविधता, प्राकृतिक संतुलन के लिये प्रत्येक जीव प्रजाति का अपना अलग महत्व होता है। अतएव कीट हत्या वैज्ञानिकों के विवेचन के लिये तो नुकसान देय ही हो जाती है, हर जीव तथा मनुष्य के लिये भी अन्तत: हानिकर होती है।विज्ञान प्रगति, अक्टूबर, ९९ पृ. ४७, भारत में कीट पतंगों की १३१ प्रजातियाँ संकटापन्न स्थिति में जी रही है।
३. कीटनाशक बहुत जहरीले रसायन होते हैं तथा इनसे बहुत से भयानक रोग फैल रहे हैं। वायु, जल, तथा मृदा को प्रदूषित कर रहे हैं—
(क) डी. डी. टी. की थोड़ी सी मात्रा ही यकृत के बढ़ने का कारण होती है तथा मस्तिष्कीय उत्तेजना उत्पन्न करती है।विज्ञान प्रगति, जून ९९.
(ख) ऑरगेनो फास्फोरस यौगिक— त्वचा, श्वसन तंत्र व पाचन तंत्र द्वारा बहुत तेजी से अवशोषित होते हैं जिससे एंजाइम तंत्र प्रभावित होता है। तंत्रिका तंत्र में एसीटाइल कोलीन संग्रहीत होने से मानसिक तनाव एवं अवसाद हो जाता है जिससे मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।वही.
(ग) विश्व में प्रतिवर्ष २० लाख व्यक्ति कीटनाशी विषाक्तता से ग्रसित हो जाते हैं जिनमें से लगभग २० हजार की मृत्यु हो जाती है।आविष्कार, नवम्बर ९९, पृ. ५१४.
४. कीटनाशक— फसलों, फलों आदि में जमा होते रहते हैं। जैविक सांद्रता की इस प्रक्रिया के द्वारा मछली जैसे जीवों में तो इन जहरीले रसायनों की मात्रा लाखों गुना हो जाती है। इनके दुष्प्रभावों को देखते हुए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने १२९ रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
५. डी़. डी. टी. जैसे हानिकारक कीटनाशक मच्छरों का कभी सफाया नहीं कर सके क्योंकि प्राकृतिक चयन के द्वारा बड़ी जल्दी ही मच्छर इन रसायनों के प्रतिरोधी हो गये। यही बात प्रत्येक कीटनाशक तथा कीड़ों के लिये लागू होती है।
६. बी. टी. कॉटन के हानिकारक जीव अन्य पौधों में पहुँचकर जीव जन्तुओं को हानि पहुँचायेंगे तथा कुछ ही वर्षों में कीड़े इन बीजों तथा पौधों के लिये प्रतिरोधी हो जायेंगे जिससे यह तकनीक भी व्यर्थ हो जायेगी।
Invention Intelligence, Jan-Feb. 2002, p. 8, Adaptation for Bt toxin peoteins in pests can also evolve and if super resistant strain of pests develops, then worse condition in agriculture will be reported.
(ब) धार्मिक प्रभाव
१. कीटनाशकों के निर्माण,विक्रय, उपयोग में संलग्न जैन धर्मानुयायीधार्मिक, सामाजिक मंचों पर लगातार प्रतिष्ठा पा रहे हैं। गर्भपात, कत्लखानों, मद्यपान,धूम्रपान के संवर्धकों, संरक्षकों की तरह कीट हत्या के लिये उत्तरदायी जैनियों के बढ़ते मान सम्मान से ऐसी विडम्बना बनी है कि बुद्धिजीवियों के मन में जैनियों के क्रियाकाण्डी तथा पाखण्डी होने की धारणा विकसित हो रही है।
२. चींटीको भी न मारने वाले के रूप में पहचाने जाने वाले जैन भी जब फसल में कीटनाशी, मच्छर मारकों, काँकरोंच नाशियों का उपयोग करते एवं कराते पाये जाते हैं जो हमारा यह आचरण देश, समाज एवं धर्म के लिये गलत संदेश देता है।
३. कीट हत्या— मारक मनोवृत्ति का निर्माण कर असहिष्णुता, अलगाव द्वन्द औरहिंसा की आत्मघाती राहें बना रही हैं।
कीट हत्या से बचने के उपाय
कीड़ों के कत्ल के द्वारा हम कीड़ों के कष्टों से कभी भी छुटकारा नहीं पा सकते हैं बल्कि ऐसे बहुत से वैज्ञानिक उपाय हैं जिनके उपयोग से कीट हत्या से आसानी से बचा जा सकता है—
१.एक बड़े क्षेत्र में एक ही फसल बार बार लेने से उसके ऊपर निर्भर रहने वाले हानिकारक कीटों की संख्या लगातार बढ़ती जाती है अत: इनकी संख्या को रोकने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि एक से अधिक प्रकार की फसलों को पास—पास बोया जाये तथा उस क्षेत्र में नियमित अन्तराल से फसलों को परिर्वितत किया जाये। फसल चक्रण के इस उपाय से कीट नियंत्रण के साथ ही फसलों की पैदावार भी अधिक होगी।
२.एक से वृक्षों को भी एक साथ नहीं लगाया जाये। कान्हा के साल वन में साल वृक्षों के एक साथ लगे होने के कारण वहाँ पर एक महामारी से लाखों पेड़ नष्ट हो चुके हैं WWF Newsletter, June 1998, p. 11.अत: फल तथा इमारती वृक्षों की विभिन्न प्रजातियों को मिला जुलाकर बोया जाये।
३.प्रकृति हमेशा प्राकृतिक रूप से अधिक सक्षम प्रतिरोधी प्रजातियाँ पैदा करती ही रहती है अत: ऐसी प्रजातियों के बीजों का ही अधिकाधिक उपयोग किया जाये।
४. प्रयोगशालाओं में संकरण के द्वारा या फिर जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा भी ऐसे बीजों का विकास किया जा रहा है जो कि प्राकृतिक रूप से अधिक सक्षम एवं कीट प्रतिरोधी हों परन्तु ऐसे पौधे कीड़ों को मारने वाले नहीं बल्कि कीड़ों से बच जाने वाले होना चाहिये।
५.बहुत पहले से हम नीम जैसे वनस्पति उत्पादों का प्रयोग करते रहे हैं जिनके द्वारा कीड़ों से बचाव होता रहा है। आज भी हम ऐसे कीट विरोधी निरापद उत्पादों का अनुसंधान कर सकते हैं जो कि अन्य जीव जन्तुओं तथा कीड़ों से बचाव के लिये सहायक हो सकते हैं। नींबू घास, पिपरमेंट, तुलसी वच, काली मिर्च, पोंगामिया आदि पौधों से प्राप्त रसायनों में कीट भगाने के गुण विभिन्न शोधों द्वारा प्रमाणित हो चुके हैं। विज्ञान प्रगति, जून ९९
६. संग्रहीत खाद्यान्नों में से कीड़ों को दूर भगाने की वैज्ञानिक विधियाँ हैं जिनके उपयोग से हम अपना लक्ष्य अहिंसक रीति से पा सकते हैं।
Investigation Intelligence, July-Aug. 2001, p. 181, New technique to repell insects from stored food grains.
७.प्रभावित पौधों से कीड़ों को पकड़ने की ऐसी वैज्ञानिक विधियाँ हैं जिनके द्वारा बिना कीड़ों को मारे उन्हें पकड़ा जा सकता है। इन विधियों के द्वारा कीड़ों को पकड़ कर अलग किया जा सकता है
।Investigation Intelligence, July-Aug. 2001, p. 184, The trap was used without the accessories, there was hardly 0.8 to 2.1% survival of the insects while it was 100% survival when the acc
८. किसी भी जीव की जनसंख्या के नियंत्रण के लिये बंध्याकरण, एक व्रूरता रहित उपाय है। कीट बंध्याकरण के लिये भी वर्षों पूर्व एक वैज्ञानिक कार्यक्रम शुरू हुआ था उसे सफलीभूत करने पर कीड़ों का हानि रहित नियंत्रण संभव है।विज्ञान प्रगति, सित. अक्टू. १९८०. पृ. ३१७ए बंध्याकरण : कीट नियंत्रण की अचूक विधि।
९.मच्छरों, काकरोंचों, मक्खी आदि गंदगी की पैदाइश है। अगर घर, मुहल्ले में समुचित सफाई रहती है तो इनका उत्पात नहीं होगा। इसके अलावा मच्छरदानी के प्रयोग से भी मच्छरों से सरलतापूर्वक बचा जा सकता है।
१०. कीट हत्या के व्रूर कृत्य को जानकर अगर अहिंसक अनुयायी कीटनाशकों का बहिष्कार कर दें तो भी कीट हत्या से बचाव संभव है। इनके अलावा कीड़ों से बचाव के अन्य उपायों पर संगठित शोधकार्य करने से सामूहिक कीट हत्या तथा कीटनाशकों, दोनों कलंकों से छुटकारा मिल सकता है। इस प्रकार कीट हत्या के कारणों, प्रभावों तथा बचाव के विस्तृत विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि अगर इस दिशा में अहिंसक शक्तियाँ विज्ञान के साथ मिलकर शोधपरक कार्य कर सके तो स्वच्छ पर्यावरण, अहिंसक समृद्धि, प्राकृतिक संतुलन तथा जैविक सहिष्णुता सब कुछ पाया जा सकता है।
आधार ग्रंथ एवं पत्रिकाएँ
१. Biology (XI & XII) 1995, N.C.E.R.T., New Delhi.
२. Invention Intelligence, N.R.D.V.C., New Delhi.
३. आविष्कार मासिक, N.R.D.C.,New Delhi.
४. विज्ञान प्रगति, C.S.I.R. New Delhi. ५. WWF Newsletter, New Delhi.
अजित जैन ‘जलज’
अध्यापक, वीर मार्ग, ककरवाहा ४७२ ०१० जिला टीकमगढ़ (म. प्र.)