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Tag: Arhat Vachana

Home Posts Tagged "Arhat Vachana"

आचार्य धरसेन एवं उनका जोणिपाहुड़ (योनिप्राभृत)!

December 8, 2020Harsh JainArhat Vachana

आचार्य धरसेन एवं उनका जोणिपाहुड़ (योनिप्राभृत) डॉ० अनुपम जैन सारांश जैन परम्परा के अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त ग्रंथ षट्खण्डागम को अपने उपदेश द्वारा सृजित कराने वाले, अंग एवं पूर्व साहित्य के एकदेश ज्ञाता आचार्य धरसेन की एकमात्र कृति योनिप्राभृत (जोणिपाहुड़) हैं। प्रस्तुत आलेख में आचार्य धरसेन एवं उनकी इस कृति का संक्षिप्त परिचय प्रस्तु है। यह…

सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में रासायनिक बंध व्यवस्था!

December 8, 2020Harsh JainArhat Vachana

सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में रासायनिक बंध व्यवस्था -सरिता जैन – विजयनगर , इन्दौर ( म० प्र० ) सारांश आचार्य पूज्यपाद चौथी शताब्दी के प्रभावशाली दार्शनिक आचार्य हुए हैं। उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ पर सर्वाथसिद्धि शीर्षक अप्रतिम टीका का सृजन किया है। गद्य में लिखी गई यह मध्यम परिमाण की विशद् वृत्ति है। इस टीका में सूत्रानुसार सिद्धांत…

मधु: एक वैज्ञानिक अनुचिंतन!

June 11, 2020Harsh JainArhat Vachana

मधु एक वैज्ञानिक अनुचिंतन अजित जैन सारांश मधुसेवन को हिंसक मानते हुये जैनग्रन्थों में इसके त्याग को मूलगुणों के अन्तर्गत माना गया है। जिसको कतिपय वैज्ञानिक तथ्यों के द्वारा लेखक द्वारा प्रस्तुत किया जा चुका हैपरंतु उस आलेख के पश्चात् कई जैन विद्वानों द्वारा प्रमुख जैन पत्रिकाओं/पुस्तकों में मधुसेवन की अहिंसकता, उपादेयता प्रदर्शित की गयी…

कीट हत्या : कारण, प्रभाव तथा बचाव!

June 9, 2020Harsh JainArhat Vachana

कीट हत्या : कारण, प्रभाव तथा बचाव आज जबकि मनुष्य हिंसा के कुचक्र में फसकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहा है। तब हिंसक मनोवृत्ति से निवृत्ति के उपायों पर चिन्तन मनन की महती आवश्यकता महसूस होती है। वैसे तो पूरा पर्यावरण विज्ञान जैनधर्म की सूक्ष्मतम अहिंसा का समर्थक है फिर भी धर्म और विज्ञान के अन्तर्संबंधों पर…

अहिंसा इतिहास के आलोक में!

June 5, 2020Harsh JainArhat Vachana

अहिंसा इतिहास के आलोक में महान् अहिंसक वीर का ही कर्तव्य हो सकता है—    वही उसे माफ कर सकता है। यह है अहिंसा की महानता, अहिंसा का शौर्य—जो मानव को अमर बना देता है। अत: जो अमर जीवन चाहते हैं वे अहिंसक बनें। अहिंसा में अमरता है और हिंसा में मरण। अहिंसा जयति सर्वथा।…

जैनशास्त्रों में तन्त्र-मन्त्रों के उल्लेख!

August 11, 2018Harsh JainArhat Vachana

जैनशास्त्रों में तन्त्र-मन्त्रों के उल्लेख जेण विणा लोगस्स वि ववहारो सव्वहा ण णिव्वहइ। तस्स भुवनेक्कगुरुणो णमो अणेगंतवायस्सयशस्तिलकचम्पू महाकाव्य, अष्टम आश्वास, पद्य २२।। लोक में जितने प्रकार के पूजा—पाठ अथवा विधि—  विधान पाये जाते हैं, वे सब तन्त्र हैं। तन्त्र के लिये यन्त्र और मन्त्र की आवश्यकता होती है। उनके अभाव में तन्त्र—सिद्धि में पूर्णता नहीं…

तत्वार्थ सूत्र-आधुनिक परिप्रेक्ष्य में!

August 8, 2018jambudweepArhat Vachana

तत्वार्थ सूत्र-आधुनिक परिप्रेक्ष्य में  संसारी जीवों में मनुष्य का जीवन सर्वोत्कृष्ट है। यह भौतिक एवं भावात्मक धरातलों पर इतनी सूक्ष्मता से एकमेक है कि भावों की सत्ता और प्रवाह उसे समझ नहीं आते—मात्र प्रभावों में वह डूबता उतराता अपना जीवन बिता देता है। भाव और इच्छाएँ उसे घेरे में लेकर सागर सी लहरों पर लहर…

अष्ट प्रातिहार्य का प्रतीकात्मक महत्त्व

July 5, 2018Harsh JainArhat Vachana

अष्ट प्रातिहार्य का प्रतीकात्मक महत्व सारांश भगवान जिनेन्द्रदेव की मूर्ति के साथ अष्ट मंगल या अष्टप्रातिहार्यों का अंकन पारंपरिक रूप से होता रहा है। प्रस्तुत आलेख में शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर अष्ट मंगलों का स्वरूप विवेचित किया गया है। प्राचीन काल से जैन मंदिरों में अष्ट मंगल प्रातिहार्य का जिन प्रतिमाओं के साथ अंकन…

‘‘चरणस्पर्श’’ का वैज्ञानिक आधार है!

March 28, 2018Harsh JainArhat Vachana

‘‘चरणस्पर्श’’ का वैज्ञानिक आधार है सारांश (सभी धर्म एवं संस्कृति, सभ्यता एवं सम्प्रदाय सैद्धान्तिक विभिन्नता होते हुए भी कुछ मान्यताओं, अवधारणाओं एवं क्रियाओं पर एकमत है। स्पष्ट है कि इनमें कुछ अन्तर्निहित विशिष्टता हैं। ‘‘चरण स्पर्श’’ भी एक ऐसी परम्परा और भावना है जो पश्चिमी रंग ऐतिहासिक एवं राजनैतिक परिवर्तन एवं भौतिकता के युग में…

स्याद्वाद के सात भंग और आधुनिक विज्ञान!

October 29, 2017Harsh JainArhat Vachana

स्याद्वाद के सात भंग और आधुनिक विज्ञान  अनिल जैन’ सारांश दार्शनिक विषयों के विवेचन में अनेक विषय इस प्रकार के उपस्थित होते हैं जब निश्चय पूर्वक ‘हाँ’ या ‘ना’ में कथन करना संभव नहीं होता है। ईसा पूर्व की शताब्दियों से ही जैन एवं जैनेतर आचार्यों के सम्मुख इसके कथन की पद्धति रही है, किन्तु…

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