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जन्मभूमि-जनक-जननी एवं तेरह संतानों के पद्यमयी परिचय

June 14, 2020कविताएँIndu Jain

जन्मभूमि-जनक-जननी एवं तेरह संतानों के पद्यमयी परिचय



(१) जन्मभूमि टिकैतनगर


है शाश्वत तीर्थ अयोध्या नगरी, अवध प्रान्त में मानी है।
 
इसके निकटस्थ टिकैतनगर की, अद्भुत-अजब कहानी है।।
 
यह नगरी है उत्तर-प्रदेश के, जनपद बाराबंकी में।
 
यहाँ धर्म में सच्ची भक्ती है, हर बच्चे-बच्चे के मन में।।
 

(२) जनक श्री छोटेलाल जी


इस नगरी में इक श्रेष्ठी थे, जिनका था ‘‘छोटेलाल’’ नाम।
 
पर वे थे सचमुच ‘‘बड़े लाल’’, उनका जीवन अनुपम महान।।
 
वे तेरह सन्तानों के पितु, होने का गौरव करते थे।
 
वे चेतन रत्नाकर खुद को, चक्री सम सुखी समझते थे।।
 

(३) जननी श्रीमती मोहिनी देवी


इनकी पत्नी अति धर्मपरायण, सती मोहिनी देवी थीं।
 
सब सन्तानों के प्रति कर्तव्य, निभाकर हुई निर्मोहिनि थीं।।
 
जब तेरह वर्ष की आयु बची, उस उम्र में आर्यिका दीक्षा ली।
 
फिर ‘रत्नमती माताजी’ बनकर, तेरहविध चर्या पाली।।
 

(४) प्रथम सन्तान-कु. मैना (गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी)


इन मात मोहिनी ने पहली, कन्या मैना को जन्म दिया।
 
जिनने निजज्ञानरश्मियों से, सारे जग को संतृप्त किया।।
 
अब वर्तमान में वे प्राचीन, मूर्ति सम पूजा योग्य बनीं।
 
उनके व्यक्तित्व को लिखने में, मेरी लेखनि सक्षम ही नहीं।।
 

(५) द्वितीय सन्तान-सौ. शान्ति देवी


हैं द्वितिय पुत्रि शान्ती देवी, जो ब्याही गईं महोने में।
 
इनको तो आनन्द आता है, मन्दिर-मूर्ती बनवाने में।।
 
इनके पति राजकुमार और, सब पुत्र-पुत्रियाँ धार्मिक हैं।
 
लखनऊ शहर में रहकर भी, सब पौत्र-पौत्रियाँ आस्तिक हैं।।
 

(६) तृतीय सन्तान-श्री कैलाशचंद जैन


हैं तृतिय रत्न कैलाशचन्द्र, सब पुत्रों में जो ज्येष्ठ कहे।
 
इनके संस्कारों का प्रभाव, सब पुत्र-पौत्रवधुओं में दिखे।।
 
प्रभु ऋषभदेव की टोंक अयोध्या, मे जिनमंदिर बनवाया।
 
इनकी पुत्री व्रत ब्रह्मचर्य से, सफल कर रही निज काया।।
 

(७) चौथी सन्तान-सौ. श्रीमती जैन


अगली पुत्री का नाम ‘श्रीमती’, इनका ब्याह पखरपुर में।
 
श्री प्रेमचंद के साथ हुआ, अब रहती हैं बहराइच में।।
 
इनको जिनवर की माता बनने, का शुभ अवसर प्राप्त हुआ।
 
इनकी इक पुत्री दीक्षा लेकर, करती हैं गुरु की सेवा।।
 

(८) पाँचवीं सन्तान-कु.मनोवती (चारित्रश्रमणी आर्यिका श्री अभयमती माताजी)


अब सुनो बंधुओं! इस कन्या का, नाम मनोवति रखा गया।
 
श्री अभयमती माताजी बनकर, सार्थक नाम किया अपना।।
 
इनने अनेक स्थानों पर, निज ज्ञान का परचम लहराया।
 
नहिं आज हमारे मध्य मगर, जीवित है उनकी यशकाया।।
 

(९) छठी सन्तान-श्री प्रकाशचंद जैन


माँ मोहिनि जी के छठे रत्न, पुत्रों में द्वितिय पुत्र जो थे।
 
उनका शुभ नाम ‘प्रकाशचन्द्र’ वे अतिशय धर्मनिष्ठ भी थे।।
 
उनकी पत्नी ज्ञाना देवी, धार्मिक संस्कारों से युत हैं।
 
इक पुत्री ब्रह्मचर्यव्रत लेकर, धर्मसाधना में रत हैं।।
 

(१०) सातवीं सन्तान-श्री सुभाषचंद जैन


माँ मोहिनि के तीसरे पुत्र, जिनका शुभ नाम रखा ‘‘सुभाष’’।
 
इनकी वाणी में सचमुच ही, ना जाने कितनी है मिठास।।
 
माँ ज्ञानमती के जन्म से पावन, गृहमंदिर में रहते ये।
 
इनकी पत्नी सुषमा देवी भी, धर्मयुक्त अरु सात्त्विक हैं।।
 

(११) आठवीं सन्तान-श्रीमती कुमुदनी जैन


पंचम कन्या का नाम ‘कुमुदनी’, रखा ज्ञानमति माता ने।
 
ये पत्नी बनीं प्रकाशचंद की, श्रेष्ठी शहर कानपुर के।।
 
इनकी इक पुत्री ब्रह्मचारिणी, दीर्घकाल से शोभित हैं।
 
इक पुत्र प्रतिष्ठाचार्य अन्य भी, पुत्र-पुत्रियाँ भाक्तिक हैं।।
 

(१२) नवमीं सन्तान-श्री रवीन्द्र जैन (कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी)


ये चौथे पुत्ररत्न इनका, शुभ नाम ‘‘रवीन्द्र’’ प्रसिद्ध हुआ।
 
पहले ‘‘भाई जी’’ अब ‘‘स्वामी जी’’, इनका है सम्मान बड़ा।।
 
ये पीठाधीश-कर्मयोगी, कई तीर्थों के संरक्षक हैं।
 
अति सरल स्वभावी-शान्तहृदय, ये संस्कृति के संवर्धक हैं।।
 

(१३) दसवीं सन्तान-श्रीमती मालती जैन

दसवीं सन्तान ‘‘मालती’’ को, धर्मालंकार उपाधी है।
 
माताजी इक नम्बरी और ये, दस नम्बरी कहाती हैं।।
 
ये दिल्ली नगरी में रहतीं, इनके पति हैं यशवीर जैन।
 
श्री देव-शास्त्र अरु गुरुभक्ति, करके ही मिलता इन्हें चैन।।
 

(१४) ग्यारहवीं सन्तान-श्रीमती कामिनी जैन


इस ही क्रम में सन्तान ग्यारवीं, जिनका नाम ‘कामिनी’ है।
 
इनके पति हैं श्री जयप्रकाश, ये दरियाबाद में रहती हैं।।
 
इनकी दो-दो पुत्रियाँ ब्रह्मचारिणी धर्म में तन्मय हैं।
 
अरु अन्य सभी पोते-पोती-नाती भक्ती में तत्पर हैं।।
 

(१५) बारहवीं सन्तान-कु. माधुरी जैन (प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी)


माँ मोहिनि की सन्तान बारवीं, जिनका नाम ‘माधुरी’ है।
 
इनने अपनी अद्भुत प्रतिभा, सारे जग को दिखला दी है।।
 
इनकी गुरुभक्ती बेमिसाल, लेखन शैली अति उत्तम है।
 
है दृढ़ता इनकी सराहनीय, वत्तृक़त्व कला भी अनुपम है।।
 

(१६) तेरहवीं सन्तान-श्रीमती त्रिशला जैन


अब सुनो बंधुओं! तेरहवीं सन्तान जिन्हें ‘‘त्रिशला’’ कहते।
 
पितु छोटेलाल इन्हें ‘सितला बिटिया’’ कह करके खुश होते।।
 
इनके पति चन्द्रप्रकाश व दोनों पुत्र-पुत्रवधुएँ धार्मिक।
 
इनकी रचनाएँ पढ़करके, तन-मन हो जाता रोमांचित।।
 
‘‘हो जन्मभूमि जयशील सदा, पितु की यशकीर्ती अमर रहे।
 
माँ मोहिनि जैसी चर्या का, हर इक नारी अनुसरण करे।।
 
ये सभी तेरहों सन्तानें, बन गईं धरोहर इस युग की।
 
सदियों तक याद रखेगी ‘‘सारिका’’, इनको भारत की धरती।।’’
 
Tags: Jain Poetries
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