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जय जयकार से अहंकार

October 26, 2014कविताएँjambudweep

जय-जयकार से अहंकार


भक्तों की जय जयकार से भर जाता है

हृदय में अहंकार जो मोक्षमार्ग के लिए घातक है

समझो तो मानव के लिए अहंकार सबसे बड़ा पातक है

क्योंकि वह रत्नत्रय की साधना में बनता सदा बाधक है

साधु भी आखिर तो साधक है मुक्तिपथ का आराधक है

वह भी कभी-कभी विचलित हो जाता है

भक्तों की भक्ति में अनजाने ही खो जाता है

तभी वह आत्मा की भक्ति में स्थिर नहीं हो पाता है

हे आत्मन्! सुनो तुम बनाओ भक्त लेकिन रहो सदा सशक्त हो जाओ आत्मा में पूर्णतया अनुरक्त तब जय जयकार भी वास्तविकता में परिणत हो जाएगी।

Tags: Jain Poetries
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