Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

जिनमाता की महिमा!

July 13, 2017कहानियाँHarsh Jain

जिनमाता की महिमा


किरण माला-माँ! आज महावीर जयन्ती के दिन सर्वत्र भगवान महावीर के गुणानुवाद गाये जा रहे हैं। सचमुच में कितनी पुण्यशालिनी थीं वे त्रिशला माता, जिन्होंने तीन लोक के नाथ ऐसे पुत्ररत्न को जन्म दिया था। माता-हाँ बेटी! आज से लगभग छब्बीस सौ आठ वर्ष और नव माह पूर्व आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन अच्युत स्वर्ग से च्युत होकर एक इन्द्र ने माता त्रिशला के गर्भ में प्रवेश किया। वे देवी त्रिशला बचपन से ही बहुत पुण्यशालिनी थीं। बालक के गर्भ में आने के छह माह पूर्व से ही देवियोें ने माता की सेवा करना प्रारंभ कर दिया था, वे देवियाँ दिव्य विनोदों के द्वारा सर्वदा ही जिनमाता को प्रसन्न रखती थीं। गर्भ में भी जिन बालक मति, श्रुत, अवधि ऐसे तीन ज्ञान के धारक थे। उनके प्रभाव से माता में अलौकिक बुद्धि प्रगट हो गई थी। नवमें मास के समीप आने पर उन देवियों ने गूढ़ अर्थ और गूढ़ क्रियापद वाले नाना प्रकार के मनोहर प्रश्नों से, प्रहेलिकाओं से काव्य और धार्मिक श्लोकों द्वारा माता का मन रंजायमान करना प्रारंभ किया था। देवी-हे मात:! बताओ, नित्य ही कामिनी जनों में आसक्त हो करके भी विरक्त है, कामुक होकर के भी अकामुक है और इच्छा सहित होकर भी इच्छा से रहित ऐसा लोक में कौन श्रेष्ठ आत्मा है। माता-‘परमात्मा’ अर्थात् जो परमात्मा होता है वह मुक्ति स्त्री में आसक्त होते हुए भी सांसारिक स्त्रियों से विरक्त रहता है।
प्रश्न-हे मात:! इस लोक और परलोक में जीवों का हित करने वाला कौन है ?
उत्तर-जो चेतन-धर्मतीर्थ का कर्ता है वही अनन्त सुख के लिए तीन जगत् का हित करने वाला है।
प्रश्न-इस लोक में किसके वचन प्रामाणिक हैं?
उत्तर-जो सर्वज्ञ, जगत् हितैषी, निर्दोष और वीतराग हैं, उनके वचन ही प्रामाणिक हैं, अन्य किसी के नहीं।
प्रश्न-जन्म-मरणरूप विषय को दूर करने वाली अमृत के समान पीने योग्य क्या वस्तु है ?
उत्तर-जिनेन्द्रदेव के मुख से उत्पन्न हुआ ज्ञानामृत ही पीने योग्य है, मिथ्याज्ञानियों के विषरूपी वचन नहीं।
प्रश्न-इस लोक में बुद्धिमानों को किसका ध्यान करना चाहिए ?
उत्तर-पंच परमेष्ठियों का, जिनागम का, आत्मतत्त्व का और धर्मशुक्लरूप ध्यान का ध्यान करना चाहिए, अन्य किसी का नहीं।
प्रश्न-शीघ्र क्या करना चाहिए ?
उत्तर-जिससे संसार का नाश हो, ऐसे अनन्तज्ञानादिक के प्राप्त कराने वाले चारित्र का पालन करना चाहिए।
प्रश्न-धर्म क्या है ?
उत्तर-तप, रत्नत्रय, व्रत, शील, उत्तम क्षमादि ये सभी धर्म हैं।
प्रश्न-धर्म का क्या फल है ?
उत्तर-समस्त इन्द्रों की विभूति, तीर्थंकर आदि की लक्ष्मी और मोक्ष सुख की प्राप्ति ही धर्म का उत्तम फल है।
प्रश्न-कौन से कार्य पाप के करने वाले हैं ?
उत्तर-मिथ्यात्व, पंचइन्द्रियाँ, क्रोधादि कषाय, कुसंग और छह अनायतन ये सब पाप के करने वाले हैं।
प्रश्न-पाप का क्या फल है ?
उत्तर-अप्रिय और दु:ख के कारण मिलना, दुर्गति में रोग-क्लेशादि भोगना और निन्द्य पर्याय पाना ये सर्व पाप के फल हैं।
प्रश्न-संसार में परम शत्रु कौन है ?
उत्तर-जो आत्महितकारक तप, दीक्षा और व्रतादि को ग्रहण न करने देवे, वह कुबुद्धि अपना और दूसरों का परम शत्रु है। इत्यादि और भी बहुत प्रकार से पूछे गये शुभकारक प्रश्नों का उत्तम स्पष्ट उत्तर सर्ववेत्ता गर्भस्थ तीर्थंकर के माहात्म्य से माता ने दिया था। गर्भस्थ पुत्र से माता का उदर नहीं बढ़ा था और न रंचमात्र ही पीड़ा हुई थी, सौधर्मेन्द्र द्वारा भेजी गई इन्द्राणी भी अप्सराओं के साथ हर्ष से उन जिन माता की सेवा करती थी, पुन: उनके माहात्म्य का क्या वर्णन करना!

अनन्तर सैकड़ों उत्सवों के साथ

अनन्तर सैकड़ों उत्सवों के साथ नौ मास पूर्ण होने के बाद चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन ‘अर्यमा’ नामक योग में माता प्रियकारिणी ने तीन लोक के गुरु ऐसे पुत्ररत्न को जन्म दिया। भगवान का जन्म होते ही स्वर्गों में इन्द्रों के आसन कम्पायमान हो गये, उनके यहाँ कल्पवृक्षों से पुष्पवृष्टि होने लगी, दिशाएँ निर्मल हो गर्इं, आकाश में मन्द-सुगंधित पवन चलने लगी। स्वर्ग लोक में बिना बजाये गंभीर ध्वनि करने वाला घण्टानाद होने लगा। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों के यहाँ सिंहनाद, शंखनाद और भेरीनाद होने लगा। सौधर्म आदि इन्द्रों ने अवधिज्ञान से जिन जन्म को जानकर असंख्यातोें देवों के साथ आकर भगवान को सुमेरु पर्वत पर ले जाकर जन्मकल्याणक महोत्सव मनाया। इस मध्यलोक में तेरहवाँ रुचकवर द्वीप है, वहाँ पर मध्य में एक रुचक पर्वत है। उसके ऊपर कूटों पर निवास करने वाली देवियाँ भगवान के जन्मकल्याणक में आती हैं। ‘विजया आदि आठ दिक्कन्याएँ जिन भगवान के जन्मकल्याणक में दर्पण को धारण करती हैं, इला आदि आठ दिक्कन्याएँ जिनमाता के ऊपर छत्र धारण करती हैं, अलंभूषा आदि आठ दिक्कन्याएँ जिन जन्मकल्याणक में चँवरों को ढोरती हैं, सौदामिनी आदि चार देवियाँ दिशाओं को निर्मल करती हैं एवं रुचका आदि चार देवियाँ जिन भगवान के जातकर्मों को करती हैं।’ अधिक कहने से क्या ? बेटी! जिन बालक के जन्मकल्याणक में देवेन्द्रों द्वारा अलौकिक और महान उत्सव मनाया जाता है जिसके असंख्यातवें भाग की भी हम लोग कल्पना नहीं कर सकते हैं, वास्तव में वे इन्द्रादिगण महान पुण्य संचय कर लेते हैं। इतने वैभव को प्राप्त कराने योग्य जो तीर्थंकर प्रकृति है, उसका बंध करना हमारे तुम्हारे आदि जीवों के परिणामों के ऊपर निर्भर है। वास्तव में सोलह कारण भावनाएँ बहुत ही महत्त्वशाली हैं। इन्हीं से तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो जाता है। किरण माला-हाँ माँ! मुझे ये भावनाएँ बहुत ही अच्छी लगती हैं। मैं भी इन भावनाओं को अपने में उतारने का प्रयत्न करूँगी।
 
Tags: Stories
Previous post जिनेन्द्र प्रतिमा की आसादना का फल! Next post शरारती मेमना!

Related Articles

On Nature Of The Sun And The Moon

March 21, 2023jambudweep

संजयन्त मुनि पर उपसर्ग

February 12, 2017jambudweep

वेश्यासेवन से हानि

July 14, 2017jambudweep
Privacy Policy