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नवग्रह शांति स्तोत्र (भाषा)!

February 17, 2014जिनेन्द्र भक्तिjambudweep

नवग्रह शांति स्तोत्र (भाषा)


 

(इस ‘नवग्रहशांति स्तोत्र’ में चौबीसों तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा नवग्रहों की शांति का वर्णन किया गया है। यह श्री भद्रबाहु आचार्य द्वारा रचित संस्कृत के नवग्रह शांति स्तोत्र का पद्यानुवाद है।)

पद्यानुवादकर्त्री- आर्यिका चंदनामती
 

त्रैलोक्यगुरू तीर्थंकर प्रभु को, श्रद्धायुत मैं नमन करूँ।

सत्गुरु के द्वारा प्रतिभासित, जिनवर वाणी को श्रवण करूँ।।

भवदुःख से दुःखी प्राणियों को, सुख प्राप्त कराने हेतु कहूँ।

कर्मोदय वश संग लगे हुए, ग्रह शांति हेतु जिनवचन कहूँ।।१।।

नभ में सूरज चन्दा ग्रह के, मंदिर में जो जिनबिम्ब अधर।

निज तुष्टि हेतु उनकी पूजा, मैं करूँ पूर्ण विधि से रुचिधर।।

चन्दन लेपन पुष्पाञ्जलि कर, सुन्दर नैवेद्य बना करके।

अर्चना करूँ श्री जिनवर की, मलयागिरि धूप जलाकर के।।२।।

ग्रह सूर्य अरिष्ट निवारक श्री, पद्मप्रभु स्वामी को वन्दूँ।

श्री चन्द्र भौम ग्रह शांति हेतु, चन्द्रप्रभु वासुपूज्य वन्दँ।।

बुध ग्रह से होने वाले कष्ट, निवारक विमल अनंत जिनम्।

श्री धर्म शान्ति कुन्थू अर नमि, सन्मति प्रभु को भी करूँ नमन।।३।।

प्रभु ऋषभ अजित जिनवर सुपार्श्व , अभिनन्दन शीतल सुमतिनाथ।

गुरुग्रह की शांति करें संभव, श्रेयांस जिनेश्वर अभी आठ।।

ग्रह शुक्रअरिष्टनिवारक भगवन्, पुष्पदंत जाने जाते।

शनि ग्रह की शांती में हेतू, मुनिसुव्रत जिन माने जाते।।४।।

श्री नेमिनाथ तीर्थंकर प्रभु, राहू ग्रह की शांती करते।

श्री मल्लि पार्श्व जिनवर दोनों, केतू ग्रह की बाधा हरते।।

ये वर्तमानकालिक चौबिस, तीर्थंकर सब सुख देते हैं।

आधी व्याधी का क्षय करके, ग्रह की शांती कर देते हैं।।५।।

आकाशगमन वाले ये ग्रह, यदि पीड़ित किसी को करते हैं।

प्राणी की जन्मलग्न एवं, राशी के संग ग्रह रहते हैं।।

तब बुद्धिमान जन तत्सम्बन्धित, ग्रह स्वामी को भजते हैं।

जिस ग्रह के नाशक जो जिनवर, उन नाम मंत्र वे जपते हैं।।६।।

इस युग के पंचम श्रुतकेवलि, श्री भद्रबाहु मुनिराज हुए।

वे गुरु इस नवग्रह शांती की, विधि बतलाने में प्रमुख हुए।।

जो प्रातः उठकर हो पवित्र, तन मन से यह स्तुति पढ़ते।

वे पद-पद पर आने वाली, आपत्ति हरें शांती लभते।।७।।

दोहा

नवग्रह शांती के लिए, नमूँ जिनेश्वर पाद।

तभी ‘‘चन्दना’’ क्षेम सुख, का मिलता साम्राज्य।।८।।

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