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पंच परमेष्ठी

December 20, 2013कविताएँjambudweep

पंच परमेष्ठी



‘‘अरिहंत’’ अरि को हनते जो अरिहन्त कहलाते हैं ईहा-इच्छाओं का अन्त हो गया जिनके अरिहन्त कहे जाते हैं।

‘‘सिद्ध’’ आत्मसिद्धि को प्राप्त सिद्ध होते हैं पर को परमात्मा बनाने में सिद्ध होते हैं उनको नमन से कार्य सिद्ध होते हैं।

‘‘आचार्य’’ आ समन्तात् चर्या करने वाले शिष्यों से आचरण कराने वाले आचार्य कहलाते हैं।

‘‘उपाध्याय’’ अध्याय के निकट स्वाध्याय के निकट उपाध्याय होते हैं निज का अध्ययन पर का अध्ययन करते हैं उपाध्याय।

‘‘साधु’’ सम्यक् प्रकार से हर क्षण अपनी साधना में लीन रहते हैं आत्मा में तल्लीन रहते हैं स्व पर कल्याण में रत ऐसे रत्नत्रय के साधक आराधक कहलाते हैं साधु।

Tags: Jain Poetries
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