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परिग्रह परिमाण अणुव्रत की कहानी!

July 6, 2017कहानियाँjambudweep

परिग्रह परिमाण अणुव्रत की कहानी


परिग्रह परिमाण अणुव्रत-धन, धान्य, मकान आदि वस्तुओं का जीवन भर के लिए परिमाण कर लेना, उससे अधिक की वांछा नहीं करना, परिग्रह- परिमाण अणुव्रत है। इस व्रत के पालन करने से आशाएं सीमित हो जाती हैं तथा नियम से सम्पत्ति बढ़ती है। हस्तिनापुर के राजा जयकुमार परिग्रह का प्रमाण कर चुके थे। एक बार सौधर्म इन्द्र ने स्वर्ग में जयकुमार के व्रत की प्रशंसा की। इस बात की परीक्षा के लिए वहाँ से एक देव ने आकर स्त्री का रूप धारण कर जयकुमार के पास अपनी स्वीकृति करने हेतु प्रार्थना की और विद्याधर के राज्य का प्रलोभन दिया। जयकुमार ने अपने व्रत की दृढ़ता रखते हुए सर्वथा उपेक्षा कर दी। तब उसने अनेक उपसर्ग किये और कहा कि आप विद्याधर का राज्य और अपना जीवन चाहते हैं तो मुझे स्वीकार करो। किन्तु जयकुमार की निस्पृहता को देखकर देव अपने रूप को प्रगट कर जयकुमार की स्तुति करके स्वर्ग की सारी बातें सुनकर चला गया। अत: परिग्रह का परिमाण अवश्य करना चाहिए। विशेष-निरतिचार पालन किये गये ये अणुव्रत नियम से स्वर्ग को प्राप्त कराते हैं। जिनके नरक, तिर्यंच या मनुष्य की आयु बंध गई है, वे पंच अणुव्रत नहीं ले सकते हैं।
 
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