
भारत में १४ जनवरी को मकरसंक्रांति का पर्व पतंग पर्व के रूप में, विशेषकर गुजरात, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और राजस्थान के कुछ भागों में मनाया जाता है। दिन भर अहमदाबाद, बड़ोदरा, सूरत, राजकोट, धनबाद, जयपुर और हैदराबाद के आकाश पतंग से छाये रहते हैं। पतंग को जिस डोर से उड़ाया जाता है, उसे मांजा कहते हैं। वैसे डोर सूत की होती है। परन्तु, उस पर कूटे हुए कांच की परत गोंद से लगाई जाती है, जो उसे उस्तरे की भाँति तेज बनाती है। पतंग उड़ाते समय पेंच लड़ाए जाते हैं। अंत में एक पतंग कटने पर वह धीरे धीरे नीचे जाता है ऐसे समय आकाश में उड़ने वाले पक्षी तेज मांजे के संपर्व में आने से कटकर घायल होते हैं। राह पर चलने वाले लोग और दुपहिया सवार भी ऐसे मांजे की चपेट में आकर चोटग्रस्त होते हैं। कितनी भी सावधानीपूर्वक पतंग उड़ाये जाएँ, मांजे के कारण पक्षी के पंख, पैर या गला कट जाता है। फलत: कभी कभी वे दर्दनाक मौत के शिकार होते हैं। मनुष्यों को भी कभी कभार अनपेक्षित चोट पहुँचती है। बच्चे मांजा लूटने की हडबड़ी में गिरकर या किसी वाहन से टकरा कर चोटग्रस्त हो जाते हैं। सामान्य धागे में भी यदि पक्षी का पैर फस जाता है तो पक्षी को हानि होती है। तो मांजे का हानिकारी प्रभाव कितना हो सकता है, यह समझा जा सकता है। दिल्ली का सुख्यात जैन चेरिटी अस्पताल वर्ष के दौरान कपोत, चिल, आदि हजारों पक्षियों का इलाज करता है, जोकि पतंग के कांच की परत वाले मांजे और गुलेल और एयर गन से घायल होते रहते हैं। वर्षों से ब्यूटी विदाउट व्रुएल्टी के द्वारा मुंबई स्थित कबूतरखाने में मकरसंक्रांति के दिन उपचार के लिए लाये जाने वाले पक्षियों पर किये गए अध्ययन में पाया गया था कि भले ही इरादनतन न हो, लेकिन, पतंग उड़ाने के दौरान पतंग के मांजे के कारण पक्षियों को चोट पहुँचती है। अत: बीडब्ल्यूसी के द्वारा इसे रोकने के लिए व्यापक रूप से दो हल प्रचारित किये गये। पतंग उड़ाने के लिए मांजे का प्रयोग न किया जाये। भीड़भाड़ वाले इलाके और पक्षियों की कालोनी से दूर रहकर पतंग उड़ायें। सरकार से भी अनुरोध किया गया कि मकर संक्रांति की छुट्टी घोषित न करें, ताकि, उस दिन कम लोग पतंग उड़ा पायें। बीडब्ल्यूसी की इस मुहीम का सुखद परिणाम वह रहा है कि २००५ की मकर संक्राति के दौरान उपचार के लिए लाये जाने वाले घायल पक्षियों की तादाद में कमी आई। इसका कारण शायद यह है कि अब शायद बहुमंजिला भवनों की गच्ची के बजाय जमीन पर लोग बिना मांजे के पतंग उड़ाते हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसा अन्य शहरों में नहीं हो रहा है। चीन के घातक मांजे के बढ़ते प्रयोग के चलते पतंग उड़ाते समय अनजाने में पक्षियों को चोटग्रस्त करने के हादसे बढ़ते जा रहे हैं।