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बेटी वेदों की ऋचा

March 21, 2018कविताएँjambudweep

बेटी वेदों की ऋचा


बेटी सावन मास की जैसे मस्त फुहार।

बेटी चंदन की महक, बेटी हरसिंगार।।

बेटी गंगा जमना का, जैसे पावन नीर।

बेटी उषा की किरन, बेटी प्रात: समीर।।

बेटी घर की चाँदनी, बेटी घर की शान।

बेटी ही रखती सदा, दो—दो घर की आन।।

बेटी कलिका बाग की, बानी मीठी तान।

बेटी बिन सूने लगें , घर, आंगन, दालान।।

बेटी सबकी लाडली , सद् उसका व्यवहार।

बेटी बिन ममता नहीं, राखी का त्यौहार।।

बेटी वेदों की ऋचा, बेटी लक्ष्मी रूप।

बेटी तो ऐसी लगे, ज्यों जाड़ों की धूप।।

Tags: Jain Poetries
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