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भगवान मुनिसुव्रतनाथ वन्दना

January 18, 2020कविताएँIndu Jain

श्री मुनिसुव्रतनाथ वंदना


 


दोहा

अखिल अमंगल को हरें, श्रीमुनिसुव्रत देव।
मेरे कर्मांजन हरें, नित्य करूँ मैं सेव।।१।।

सखी छंद

जय जय जिनदेव हमारे, जय जय भविजन बहुतारे।
जय समवसरण के देवा, शत इन्द्र करें तुम सेवा।।२।।
 
जय मल्लि प्रमुख गणधरजी, सब अठरह गणधर गुरु जी।
जय तीस हजार मुनीश्वर, रत्नत्रय भूषित ऋषिवर।।३।।
 
जय गणिनी सुपुष्पदंता, पच्चास सहस संयतिका।
श्रावक इक लाख वहाँ पर, त्रय लाख श्राविका शुभ कर।।४।।
 
तनु अस्सी हाथ कहाओ, प्रभु तीस सहस वर्षायू।
कच्छप है चिह्न प्रभू का, तनु नीलवर्ण सुंदर था।।५।।
 
मुनिवृंद तुम्हें चित धारें, भविवृंद सुयश विस्तारें।
सुरनर किन्नर गुण गावें, किन्नरियाँ बीन बजावें।।६।।
 
भक्तीवश नृत्य करे हैं, गुण गाकर पाप हरे हैं।
विद्याधर गण बहु आवें, दर्शन कर पुण्य कमावें।।७।।
 
भव भव के त्रास मिटावें, यम का अस्तित्व हटावें।
जो जिनगुण में मन पागें, तिन देख मोहरिपु भागें।।८।।
 
जो प्रभु की पूज रचावें, इस जग में पूजा पावें।
जो प्रभु का ध्यान धरे हैं, उनका सब ध्यान करे हैं।।९।।
 
जो करते भक्ति तुम्हारी, वे भव भव में सुखियारी।
इस हेतु प्रभो! तुम पासे, मन के उद्गार निकासे।।१०।।
 
जब तक मुझ मुक्ति न होवे, तब तक सम्यक्त्व न खोवे।
तब तक जिनगुण उच्चारूँ, तब तक मैं संयम धारूँ।।११।।
 
तब तक हो श्रेष्ठ समाधी, नाशे जन्मादिक व्याधी।
तब तक रत्नत्रय पाऊँ, तब तक निज ध्यान लगाऊँ।।१२।।
 
तब तक तुमही मुझ स्वामी, भव भव में हो निष्कामी।
ये भाव हमारे पूरो, मुझ मोह शत्रु को चूरो।।१३।।

दोहा

मुनिगण व्रतिगण से नमित,मुनिसुव्रत जिनराज ।
नमत ज्ञानमति पूर्ण हो, मिले स्वात्म साम्राज।।१४।।
 
Tags: Jain Poetries
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