भारतीय गोवंश (बास इंडीकस—जेबू)— का उद्गम जंगल से नहीं वरन् समुद्र —मन्थन में प्राप्त गोमाताओं से है। भारतीय गोवंश आरम्भ से ही मनुष्य द्वारा पालित है, जबकि विदेशी गोवंश (बास टोरस) बहुत समय तक जंगलों में हिंसक पशुओं के रूप में विचरने के पश्चात् मनुष्यों के घर में आकर पला है।
भारतीय गोवंश की पहचान
भारतीय गोवंश की कदकाठी छोटी—सुडौल, पीठ पर ककुद (कूबड़), गले के नीचे झालर—सा गलकम्बल, माथा चौड़ा, आँखें छोटी—सुन्दर, सींग बड़े—मुड़े हुए तथा अयन (ऊधस्ऐन) छोटे होते हैं।
भारतीय गोवंश की प्रजातियांं
भारतीय गोवंश की कुछ प्रमुख नस्लें निम्न प्रकार की हैं— दुग्ध—प्रधान—साहीवाल (पंजाब), बछड़ा— प्रधान— नागौरी (नागौर), सर्वांगी— नस्ल— (१) थारपारकर (बाड़मेर, जैसलमेर), (२) राठी (बीकानेर, श्रीगंगानगर), (३) अंगोल (नेल्लौर), (४)कांकरेज (मेहसाना), (५) गिर (जूनागढ़)। भारतीय गोवंश की प्रजातियों से अनेक अब विलुप्त हो चुकी हैं।
भारतीय गोवंश की विशेषताएं
भारतीय गोवंश को गर्मी—जाड़ा—बरसात सभी को सहने की आदत है। मई—जून की ठेठ दुपहरी में भारतीय गोवंश किसी पेड़ के नीचे खड़ा होकर तथा दिसम्बर—जनवरी की हाड़ काँपती सर्दी में खुले आसमान के नीचे आपस में सटकर बैठ, पूरी रात गुजार देता है।बरसात में उसकी त्वचा के इन्टरलीक्यूलर ग्लैण्ड से तैलीय पदार्थ निकलने से उसे वर्षा से होने वाला कोई संक्रमण नहीं होता। थारपारकर गाय थार का पूरा मरुस्थल पार कर जाती हैं। भारतीय नस्ल की गायों में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। गायें अपनी लम्बी सींगों के माध्यम से सूर्य की किरणों को इस सूर्यकेतु नाड़ी तक पहुँचाती है। इन सूर्य—किरणों से सूर्यकेतु नाड़ी स्वर्णभस्म बनाती है, जिसका बड़ा अंश दूध में और अल्पांश गोमूत्र में आता है। यह सूर्यकेतु नाड़ी केवल भारतीय नस्लों (बास इंडीकस—जेबू)— में ही पायी जाती हैं , विदेशी (बास टोरस) गायों में नहीं, क्योंकि दोनों के मूलवंश अलग—अलग हैं। तमाम चौपायों में भारतीय गोवंश ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसकी आँतें सबसे लम्बी (लगभग १८० फीट) होती है। भारतीय गाय के दूध में अनसैचुरेटिड फैट होता है, यह वसा धमनियों में नहीं जमता और हृदय को भी पुष्ट करता है। भारतीय गाय के दूध की वसा में ‘कन्जूगेटिड लिनोलिड एसिड’ (सी.एल.ए.) यौगिक सबसे अधिक पाया जाता है। कैंसर रोधी है। भारतीय गाय चरते समय यदि कोई विषैला पदार्थ खा लेती हैं, तो उसका असर अपने दूध में नहीं आने देती। गाय के दही में ऐसा मित्र बैक्ट्रीरिया पाया जाता है, जो एड्स की बीमारी को फैलने से रोकने में सहायक है। भारतीय गोवंश का गोबर गाढ़ा होता है तथा गोमाता संसार की एकमात्र ऐसी प्राणी है, जिसके गोबर (मल) का औषधि में तथा यज्ञ —देवपूजा आदि में प्रयोग किया जाता है। भारतीय गोवंश आने वाली प्राकृतिक आपदा तथा भूकम्प आदि की पूर्व सूचना दे देता है। महाराष्ट्र के लातूर में आये भूकम्प के पूर्व स्थानीय देवनी प्रजाति का गोवंश बहुत जोर से रंभाने लगा तथा एक दिशा में दौड़ने लगा था। जिन लोगों ने गोवंश का अनुसरण करके उसी दिशा में भागना शुरु किया, उनकी जान बच गयी। भारतीय गोवंश के गोबर —गोमूत्र में रेडियोधर्मिता को सोखने का गुण होता है। रेडियोधर्मिता के विकिरण का प्रभाव गोवंश के गोबर से लिपे हुए मकानों पर नहीं होता। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से घातक गैस का रिसाव हुआ तो इस गैस का उन घरों में कम असर हुआ। जहां प्रतिदिन गाय के घी और कण्डे से हवन होता था। आज भारतीय गोवंश के गोबर —गोमूत्र से कीट नियंत्रक तथा अनेक असाध्य रोगों की दवाएं और दैनिक उपयोग की वस्तुएँ बनायी जा रही है। अमेरिका ने पेटेंट देकर स्वीकार किया है कि कैंसर —नियंत्रण में गोमूत्र सहायक है। भारतीय गोवंश पंचगव्य निकट भविष्य में प्रमुख जैव औषध बनने की सीमा पर खड़ा है। भारतीय गोवंश की पीठ, गलमाल पर प्रतिदिन आधा घंटा हाथ फेरने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। इस प्रक्रिया से जिन्हें सिर में दर्द बना रहता है, उन्हें भी लाभ पहुँचता है। देशी गोवंश के गोबर से लिपि जमीन पर बैठने से शरीर के चर्म रोगों में लाभ मिलता है। देशी गोवंश के गोबर को शरीर पर मलकर स्नान करने से बहुत से चर्मरोग दूर हो जाते हैं। गोमय स्नान को पवित्रता तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है। भारतीय गोवंश जितने मूल्य का चारा खाता है, उससे ५ गुना मूल्य गोबर के रूप में वापस कर देता है। भारतीय गायों की ब्याँत (बछड़ा—बछड़ी पैदा करना) १७ वर्ष तक है। देशी गोवंश पालने में पशुपालक को अधिक लाभ है। देशी गाय के चारे, रखरखाव को देखकर ही मुगलशासकों ने गोवध पर पाबन्दी लगायी थी। बछड़ा बछड़ी साथ रहने के कारण इन्हें ऑक्सीटॉक्सिन इन्जेक्शन लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। भारतीय गोवंश की महत्ता को अब पशु वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार कर लिया है। अनेक कृषि—विश्वविद्यालयों ने देशी गायों यथा— साहीवाल, थारपारकर, लाल सिन्धी, हरियाणा आदि के संवर्धन की परियोजनाएं प्रारम्भ की हैं, परंतु अभी यह आधे—अधूरे मन से हैं, क्योंकि जिन वैज्ञानिकों को विदेशी अनुदान प्राप्त हैं, वे अभी भी क्रासब्रीड का राग अलाप रहे हैं। भारतीय गोवंश की अवनति का कारण— एक सामान्य धारणा है कि देशी गाय बहुत कम दूध देती है और क्रासब्रीड गाय अधिक दूध देती है। तथ्य यह है कि दूध भी उन्नत नस्ल की शुद्ध भारतीय गायें ही अधिक देती हैं। सबसे अधिक दूध देने का विश्व रिकार्ड भी भारतीय गोवंश ‘गिर’ (इजराईल में) का है। लम्बे समय तक हमने अपने देशी गोवंश की उपेक्षा की,रख—रखाव एवं खान—पान ठीक नहीं रखा, जिसकी वजह से भारतीय गोवंश की वर्तमान दुर्दशा है। पाश्चात्य वैज्ञानिकों के प्रचार में आकर हम विदेशी क्रासब्रीड गोवंश को तरजीह देने लगे हैं। यह महान् विड्म्बना है।