भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का मांस और पॉल्ट्रीविभाग का विजन प्रपत्र २०१५ मेरे सामने रखा हैं योजना आयोग में ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष २००७-२०१२) के एनीमल एसब्रेंडरी के वर्किंग ग्रुप के २३२ पृष्ठीय विशाल रिपोर्ट की प्रति भी मेरे सामने रखी है। मैंने अभी इसका पुन: गंभीरता से अध्ययन किया है। अपने तीन विगत दिल्ल प्रवासों के दौरान श्री मोदीजी के साथ मिल बैठकर हमने देश की वर्तमान मांस नीति एवं स्थिति पर गहन समीक्षा की तथा विस्तृत नोट तैयार करने का श्रम भी किया। आईये सर्वप्रथम देखते हैं, विजन प्रपत्र २०१५ के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु—
१.भारतवर्ष में पॉल्ट्री मीट पशु प्रोटीन में सर्वाधिक तेज गति से बढ़ने वाला क्षेत्र है। १९९१ में जहाँ देश में प्रतिव्यक्ति खपत मात्र ४२० ग्राम थी वह २००३ तक बढ़कर १.५ किलो हो गई।
२.इस दौरान पशु प्रोटीन में पॉल्ट्री का हिस्सा १६ प्रतिशत से बढ़कर ४० प्रतिशत हो गया।
३. पांच से १९ वर्ष के आयु समूह में ३५ प्रतिशत भारतीय आबादी है जो तेजी से मांस सेवन की ओर प्रवृत्त हो सकती हैं उसकी शुरुआत पाल्ट्री उत्पाद से ही होती है।
४. हिन्दू आबादी ८० प्रतिशत है, जिन्हें मात्र गोमांस से परहेज है। मुस्ल्तिम आबादी १२ प्रतिशत है, जिन्हें सुअर मांस से परहेज होता है। पॉल्ट्री मांस से दोनों को ही कोई ऐतराज नहीं है।
५. भैंस मांस का संबंध बीफ से होने के बावजूद सस्ता होने के कारण सर्वाधिक उपभोग होता है।
६. देश के औसत का तमिलनाडु में पॉल्ट्री उपभोग तीन गुणा अधिक है।
७.फैक्ट्री मांस के बजाय देश में ताजा मांस की मांग अधिक है।
८.सरकार म्यूनिसिपल बूचड़खानों को आधुनिक करने की योजना में मार्च २००४ तक संलग्न थी तथा ६३ प्रोजेक्ट इसके अंतर्गत स्वीकृत हुए। विरोध के कारण यह योजना इसके बाद बन्द करनी पड़ी। (स्मरण रखें, दसवीं योजना में हमारे व्यक्तिगत विरोध के कारण ही यह योजना निरस्त की गई थी।
१. भारतवर्ष दूध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है तथा यहाँ १९७०-७१ के प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खपत ११२ ग्राम से बढ़कर २००४-०५ में वह २२९ ग्राम हो गई, जो स्वास्थ्य आवश्यकता औसत २४० ग्राम के काफी नजदीक है। विश्व औसत २८५ ग्राम प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन है।
२.भारत में देशी गौवंश १९९७ से १७.८७८ करोड़ था जो २००३ में १०.२३ प्रतिशत घटकर १६.०४९ करोड़ ही बचा जबकि इसी दौरान संकरित गोवंश की आबादी २.०१ करोड़ से २२.८२ प्रतिशत बढ़कर २.४६८ करोड़ हो गई है। कुल गौवंश इन ६ वर्षों में १९.८८८ करोड़ से ६.८९ प्रतिशत घटकर १८.५१८ करोड़ मात्र बचा जबकि मानव आबादी तेजी से बढ़ी। इसके विपरीत भैंस की आबादी इन वर्षों में ८.९९ करोड़ से ८.९० प्रतिशत बढ़कर ९.७९ करोड़ हो गई। भारत में विश्व का १६ प्रतिशत गौवंश है और ५७ प्रतिशत भैंस आबादी है।
३. भारत विश्व में अण्डे उत्पादन में चौथे नंबर पर है। २००४-०५ में देश में ४५२० करोड़ अण्डे पैरा किए गए।
४.दुग्ध उत्पादन में ५८ प्रतिशत हिस्सा भैंस का है तथा ४२ प्रतिशत गोदुग्ध का है।
५.देश में ३८९४ अधिकृत एवं २५७५४ अनाधिकृत बूचड़खाने हैं। इसके अतिरिक्त १५ विशाल निर्यातमूलक आधुनिक कत्लखाने हैं, १५ नये निर्माणाधीन हैं तथा ३५ निर्यात के लिए मांस प्रसंस्करण एवं पैकेिंजग इकाइयां हैं।
६. निर्यात के अधिकृत आंकड़ें इस प्रकार है—(मात्रा लाख टन में एवं मूल्य करोड़ रुपये)
७. देश में मांस निर्यात में मुख्य हिस्सा मांस के निर्यात का है। पॉल्ट्री मांस निर्यात के २००४-०५ के घटने का बड़ा कारण वर्ड फ्लू की बीमारी का फैलना है।
८.देश में मांस—अण्डे उत्पादन की अनुमानित वृद्धि — २००६-०२०११-१२ वृद्धि दर मांस (लाख टन में) ६५.०० १०४.७० १० प्रतिशत अण्डा (करोड़ संख्या में)४९०० ७८९१ १० प्रतिशत
९. नवीन बूचड़खानों के लिये ग्यारहवीं योजना में प्रावधान—(करोड़ रुपये में) ५०० नवीन ग्रामीण बूचड़खानों का निर्माण २५०० ५० नवीन आधुनिक निर्यातक बूचड़खाने का निर्माण प्रावधान १००० मंत्रालय में एक आरटीआई के जवाब में १२ अगस्त ०९ को बताया है कि— मंत्रालय ने दस बूचड़खानों के आधुनिकीकरण करने के प्रस्ताव पास किये हैं। इनके अतिरिक्त २२ और प्रस्ताव आये हुए हैं। ग्यारहवी योजना में पचास नये तथा ११० आधुनिकीकरण के प्रस्ताव स्वीकृत हैं। बुनियादी विकास के लिए १५० करोड़ रुपये का बजट प्रस्ताव स्वीकृत है। ताजा आकड़ों को देखने से ज्ञात होता है कि देश में मांस व पशु उत्पादन निर्यात बेहद तेजी से बढ़ रहा हैं कुल पशु उत्पादन निर्यात २००६-०७ में ४१०९.९३ करोड़ रुपया तथा बकरी/भेड़ मांस मात्र ८९०८ टन और मूल्य १३४.१० करोड़ रुपया हुआ है। अर्थात् मांस निर्यात का ९७ प्रतिशत भैंस मांस का निर्यात है जो कि मुख्यत: मलेश्सिया, मॉरीशस, फिलीपीन्स व गल्फ देशों को होता है। इन पिछले चार—पाँच वर्षों में मांस निर्यात में वृद्धि दर तीन गुना के करीब हुई है। भारत हालांकि दुग्ध उत्पादन में विश्व में अग्रणी देश है परन्तु प्रतिवर्ष प्रति गाय दुग्ध उत्पादन भारत में मात्र ९१७ किलो है। विश्व के ४४ देशों में भारत का स्थान ३५वां है। उत्तरी भारत जो बड़ा दुग्ध उत्पादक क्षेत्र है वहाँ दुग्ध से मुनाफा घटा है कारण दूध के दाम में मात्र १० प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है जबकि २००६ और २००९ के बीच चारे की कीमत में ९० प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अत: इन क्षेत्रों में मांस हेतु पशु सुलभता बढ़ी है। मांस निर्यात पर ३० प्रतिशत अनुदान भी आकर्षक का बड़ा कारण है। सरकार में करोड़ों—अरबों रुपयों का बजट देकर देश में फिशबोर्ड और मीट बोर्ड बना दिया है। अब हिंसक समाज को चुनौती का सामना करना है।
प्राथमिकता से हिंसक समाज के लिए करणीय कार्य
१. सरकार द्वारा देश में पशु गणना का कार्य होने वाला है। अत: गोवंश की सही—सही गणना हो, इस दिशा में समाज की जागरूकता अपेक्षित है।
२.अगले वर्ष सरकार द्वारा बारहवी पंचवर्षीय योजना का प्रारूप तैयार करने का कार्य शुरु होने वाला है। हमें अभी इसे इसके लिए सचेत और सक्रिय होकर कार्य प्रारंभ कर देना चाहिए तथा इसके लिए ठोस प्रभावी कार्य योजना सोचनी चाहिए, तभी कुछ सार्थक उपलब्धि प्राप्त करना संभव होगा। क्या हिंसक समाज समय की इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है। इस प्रश्न का उत्तर समय के गर्भ में छिपा है।