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मूर्ति निर्माण का चित्रमयी इतिहास : एक दृष्टि में (सन् १९९६ से २०१६)

June 7, 2022ऋषभगिरि मांगीतुंगीSurbhi Jain

मूर्ति निर्माण का चित्रमयी इतिहास : एक दृष्टि में
(सन् १९९६ से २०१६)

गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा मूर्ति निर्माण की प्रेरणा
शरदपूर्णिमा, २६ अक्टूबर १९९६, मांगीतुंगी प्रवास

 

शिलापूजन
३ मार्च २००२
-द्वारा-
संघपति श्री महावीर प्रसाद जैन-
सौ. कुसुमलता जैन परिवार,
बंगाली स्वीट्स, दिल्ली।
विशेष उपस्थित-श्री कमलचंद जैन
खारीबावली, दिल्ली

शिला निकालने हेतु पर्वत की कांट-छांट सन् २००२ से २००६

 

‘‘अदम्य साहस के साथ जान हथेली पर लेकर रस्सों के सहारे इस कच्चे मार्ग से चिन्हित मूर्तिस्थल तक जाने का यह प्रारंभिक उपक्रम है। समिति ने इस मार्ग को भी प्रारंभिक रूप से स्वत: निर्मित किया।’’

 

मूर्ति निर्माण कार्य
का विकासीय अवलोकन
सन् २००७

पर्वत की थोड़ी-बहुत कटाई-छटाई के बाद   मूर्ति के लिए उभरते शिला-स्थल का दृश्य

 

 

पर्वत को ऊँचाई से कांटने-छांटने के बाद  मूर्ति के मस्तक स्थल पर बना यह प्लेटफार्म
अद्भुत कार्य की कहानी कहता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

     इसके बाद पुन: पर्वत की किंटग करते हुए  पैरों की गहराई तक पत्थर को कांटा-छांटा गया।

 

 

 

मूर्ति निर्माण कार्य
का विकासीय अवलोकन
सन् २००८-२००९

ऊपर पहुँचने के लिए कड़ी मेहनत के साथ  ऐसा मार्ग तैयार किया गया  सन् २००८

 

मजदूरों द्वारा महान साहस के साथ पहाड़ पर किेये गये कार्य की एक झलक-सन् २००८

 

 

मूर्ति निर्माण कार्य
का विकासीय अवलोकन
सन् २०१०

 

 

मूर्ति हेतु पर्वत में से कांट-छांटकर निकलती शिला का एक विहंगम दृश्य एवं वायरसॉ-चैनसॉ आदि मशीनों का प्रयोग कर पर्वत को कांटते-छांटते कारीगर-सन् २०१०

 

पहाड़ काटने एवं मूर्ति शिला को उकेरने हेतु वाटर बैलून और एयर बैलून का उपयोग करके कार्य को अंजाम देने की कोशिशें हुई सफल।
सन्-२०११

 

 

‘‘अंततोगत्वा पर्वत को कांट-छांटकर विशाल
अखण्ड पाषाण शिला की प्राप्ति
जैन धर्म की विजय पताका को प्रदर्शित कर रही है।’’

 

 

 

 

 

 

 

 

मूर्ति निर्माण कार्य
का विकासीय अवलोकन
सन् २०११

 

असंभव जैसी कठिनाईयों के साथ शिला के सर्वोच्च भाग अर्थात् मूर्ति के मस्तक स्थल पर पोकलैण्ड मशीन द्वारा कार्य का अद्भुत दृश्य।

 

अन्य चित्रों में शिला की कटाई-छटाई करके मूर्ति बनाने हेतु शिर भाग और कंधे भाग उकेरने का सफल उपक्रम

 

मूर्ति निर्माण कार्य का
विकासीय अवलोकन-सन् २०१२

‘‘मूर्ति निर्माण हेतु निकाली गई शिला को जब घिसाई आदि करके मूर्ति की गढ़ाई के योग्य बना दिया गया, तो मानों समिति ने एक बहुत बड़ा किला फतह कर लिया।’’

इस अवसर पर अनुष्ठानपूर्वक खुशियाँ मनाई गई और २५ दिसम्बर २०१२ को सोने-चांदी की छैनी से प्रतिमा के मस्तक से कार्य का शुभारंभ किया गया।

 

 

 

 

मूर्ति निर्माण कार्य का विकासीय अवलोकन
सन् २०१३

सन् २०१३ में सर्वप्रथम शिला पर शिर की गोलाई करके चेहरे का निर्माण प्रारंभ किया गया। चित्र में देखें बनते आँख, नाक, कान, गाल आदि के ऐतिहासिक दृश्य

‘‘इससे पूर्व वसुनंदि प्रतिष्ठापाठ आदि प्राचीन, मान्य ग्रंथों के आधार पर  नवताल की मूर्ति निर्माण हेतु पेन्टर से सम्पूर्ण शिला पर  वास्तविक माप के साथ मूर्ति का चित्र रेखांकित करवाया गया।’’

 

मूर्ति निर्माण कार्य का
विकासीय अवलोकन-सन् २०१४

 

सन् २०१४ में मूर्ति निर्माण के कार्य को गति प्राप्त हुई और कारीगरों द्वारा चेहरे पर आँख, नाक, गाल, कान और पीछे गर्दन के साथ वक्षस्थल का भी आकार लगभग निर्मित कर लिया गया।

 

 

मूर्ति निर्माण कार्य का
विकासीय अवलोकन-सन् २०१५

 

 

 

 

 

सन् २०१५ में मूर्ति के मस्तक पर सुन्दर बालों का निर्माण हुआ और मूर्ति का चेहरा, वक्षस्थल, दोनों भुजाएं तथा पैरों की बनावट लगभग पूर्णता को प्राप्त हुई। इस वर्ष की
कार्य-प्रगति नीचे दिये चित्रों में विशेष प्रतिबिम्बित होती है।

 

मूर्ति निर्माण कार्य का
विकासीय अवलोकन-सन् २०१६

 

 

जनवरी-२०१६ में, चरण, बैल चिन्ह तथा आजू-बाजू यक्ष-यक्षिणी की प्रतिमाएं उत्कीर्ण करने के साथ मूर्ति निर्माण का कार्य पूर्ण हुआ। इसके उपरांत भगवान का अति सुन्दर एवं विशाल कमलासन निर्मित किया गया।

 

२४ जनवरी २०१६ को चली मूर्ति निर्माण कार्य की अंतिम छैनी

 

 

प्रतिमा के मुखमंडल पर नेत्रों को खोलने हेतु शुभ मुहूर्त में अंतिम बार कारीगर द्वारा छैनी चलाई गई और ऊपर दिख रहे चित्र में भगवान की दिव्यदृष्टि इस सृष्टि पर प्रथम बार तिथि-माघ कृ. एकम् ,
२४ जनवरी २०१६ को प्रात: ९ बजे से १० बजे के मध्य पड़ी।

 

 

अखण्ड पाषाण में १०८ फुट ऊँची भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का निर्माण,
विगत पृष्ठों में क्रमश:
प्रतिमा निर्माण के इतिहास को जीवंत चित्रांकित कर रहा है, जो हम सभी के लिए
महान संग्रहणीय एवं
स्मृति योग्य है।

Tags: Mangitungi
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