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श्री अनंतजिन स्तोत्र

September 27, 2022जिनेन्द्र भक्तिaadesh

श्री अनंतजिन स्तोत्र


जलोद्धतगति: छन्द:-(१२ अक्षरी)

निजात्मसमतारसैर्गुणनिधिं। भृतं सुखसुधाकरं शिवमयं।।
उपैमि तव भक्तितो जिनप! त्वां!। अनन्तजिन! ते नमोऽस्तु सततं।।१।।

प्रियंवदा छन्द:-(१२ अक्षरी)

त्रिविधकर्ममलदोषनाशकृत्। त्रिभुवनेऽग्रशिखरे विराजते।
त्रिभुवनाधिप! सदा पुनीहि मां! सहजमात्मजसुखं प्रदेहि मे।।२।।

ललिता छन्द:-(१२ अक्षरी)

य: सिंहसेननृपज: सुकार्तिके। गर्भेऽसिते प्रथमवासरे त्वित:।।
तत्र त्रिबोधयुत एव पुण्यवान्! तस्य प्रभाववशत: प्रसू: बभौ।।३।।

क्षमा छन्द:-(१३ अक्षरी)

जिनजनिमसिता ज्येष्ठजा द्वादशी। त्रिदशपतिनुतां प्राप्तवत्यर्थिनां।।

अतुलविभवदा-तत्तिथावंतहृत्। व्रतगुणनिधिभुक् दीक्षितोऽभूज्जिन:।।४।।

प्रहर्षिणी छन्द:-

चैत्रस्यासित इति तीर्थकर्तुरेकं। केवल्यं विलसितमंतिमे दिने वै।।
संप्राप्त: स्वशिवपदं स तत्तिथौ च। त्वद्भक्ते: फलमिदमेव मेऽपि भूयात्।।५।।

अनुष्टुप् छन्द:-

त्रिंशल्लक्षसमात्मायु: पंचाशच्चापसत्तनु:।
कनत्कनकसंकाश: त्वमंतकांतकं गत:।।६।।
अनंतगुणराशिस्त्वं, सेधालाञ्छनलाञ्छित:।
देहि मेऽनंतधीसौख्यं, जयश्यामात्मज! प्रभो !।।७।।


-सरस्वती मंत्र-

ॐ ह्रीं श्रीं वद वद वाग्वादिनि! भगवति! सरस्वति! ह्रीं नम:।

Tags: Stotra
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