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सत्वेषु मैत्री— क्षमावाणी का उद्देश्य!

July 12, 2017पर्वHarsh Jain

सत्वेषु मैत्री— क्षमावाणी का उद्देश्य


जो गल्ती नहीं करता है, उसे भगवान कहते हैं। जो गल्ती करके सुधारता है, उसे इंसान कहते हैं। जो समझे न गल्ति को, उसे हैवान कहते हैं। जो करता गल्ती पर गल्ती, उसे शैतान कहते हैं।क्षमावाणी पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के कलशारोहण का दिन है, पर्युषण पर्व का प्रारंभ क्षमा रूपी नींव से होता है और उसका समापन कलशारोहण के द्वारा । इसका कारण यह है कि क्रोध को तजने के उपरान्त ही मार्दवादि धर्म हमारे अन्दर विराजमान हो सकता है। मंदिर कितना ही सुंदर बना हो, उसका शिखर भी कितना ही सुंदर बना हो, पर उसमें कलश न हो तो वह सुंदर नहीं लगता । उसकी सुन्दरता के अभाव में उसकी महत्ता भी कम हो जाती है। ठीक उसी प्रकार हम इस जीवन में दसों धर्मों को स्वीकार कर लेवें पर मन में क्षमा मांगने व करने का भाव उत्पन्न नहीं हुआ तो दस दिनों तक हमारा पूजा—पाठ , त्याग आदि करना व्यर्थ होगा। क्षमावाणी का तात्पर्य मात्र हाथ जोड़ना,गले मिलना, हाथ मिलाना नहीं, वरन् अन्तरंग में कलुषित परिणामों को न होने देना, राग द्वेष को नष्ट करना, शत्रु—मित्र सभी में समभाव रखना, यही क्षमावाणी पर्व का मुख्य उद्देश्य है, जैसा कि सामायिक पाठ में भी कहा है— सत्वेषु मैत्री अर्थात् समस्त जीवों के प्रति मेरा मैत्री— भाव हो। मेरा कोई शत्रु न रहे। मैं सभी जीवों से क्षमा मांगता हूँ एवं क्षमा करता हूँ। क्षमावाणी पर्व तो हम हर वर्ष मानते हैं, गले मिलते हैं, हाथ जोड़ते हैं, चरण —स्पर्श करते हैं, पर देख—देखकर , चुन—चुनकर किससे हमारा संबंध है कौन हमारा है, किससे हमारा लेन—देन चलता है, कौन हमें सुख—दुख में सहयोग करता है, कौन हमसे बड़ा है, कौन हमारा मित्र है आदि। भगवान महावीर कहते हैं कि यह आपका क्षमावाणी पर्व मनाना सार्थक नहीं है अपितु जब हमें क्षमा मांगनी ही हो तो कंजूसी क्यों ? अपना—पराया, छोटा—बड़ा, मित्र—शत्रु आदि का भेदभाव क्यों ? विश्व के प्राणी मात्र के प्रति मेरा क्षमा—भाव रहे, चाहे एक इन्द्रियादि ही क्यों न हो। न जाने कौन —से भव में या इसी भव में भी चलने—फिरने आदि में मेरे द्वारा उनका घात हुआ हो, कष्ट हुआ, तो जाने या अनजाने किसी भी पल मेरे मन में उनके प्रति बुरे विचार उत्पन्न हुए हों, तो भी उन सभी प्राणियों से क्षमा मांगते हैं एवं सभी को क्षमा करते हैं। सभी प्राणियों के प्रति मेरा क्षमा—भाव हो, किसी से भी विरोध न हो। हे प्रभु। ऐसे भाव आज क्षमावाणी पर्व के दिन ही नहीं वरन् जीवन भर बने रहें और आज प्रतिज्ञा करें संकल्प करें कि आज तक हम पापी—दृष्ट प्राणी के द्वारा जो गलती हुई वह गलती पुन: दुबारा न हो। यह क्षमावाणी पर्व हमें किये गये अपराधों के शोधन के लिए अवसर प्रदान करता है। हम और आप अपने कृत अपराधों की आलोचना, निन्दा गर्हापूर्वक आत्मशुद्धि को प्राप्तकर, गौतम स्वामी के द्वारा कहे गये उपदेशों को अपने जीवन में उतारें।खम्मामि सव्व—जीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती में सव्व— भूदेसू वैरं मज्झं ण केण वि।। जो अहंकारी है वह किसी से क्षमा याचना नहीं करता।क्षमा याचना और क्षमादान ये दोनों ही वृत्तियाँ हृदय को हलका करने वाली हैं, जो कलुषता को मिटाकर परम शान्ति प्रदान करने वाली है आचार्य भगवान् कहते हैं कि क्षमा वीरस्य भूषणम् । भयंकर कर्म—शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाली क्षमा वीरों के पास टिकती है, कायर—निबर्ल पुरूषों के पास नहीं मिल सकती। इसलिये क्षमा को वीरों का आभूषण कहा गया है। जैनागम में ऐसे अनेकों दृष्टान्त मिलते हैं जिन्होंने इसी क्षमावाणी पर्व को धारण कर अतीन्द्रिय सुख को प्राप्त किया है। महामुनिराज पाश्र्वनाथ के ऊपर कमठ के जीव ने सात दिन तक घोर उपसर्ग करते रहने पर भी उन्होंने उसका प्रतिकार नहीं किया। गजकुमार, गुरूदत्त, पांडव आदि मुनिराजों ने भी इसी क्षमावाणी पर्व को धारण किये चित्त में विकारोत्पत्ति के अनेक कारण मिलने पर भी विकृत्त नहीं हुए।

विराग वाणी अगस्त २०१४
Tags: Daslakshan Parv
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