उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य ये सभी दशधर्म के बताने वाले हैं |
प्राकृत पूजा : एक अनुशीलन प्रत्येक व्यक्ति सुसंस्कृत संस्कारों की सरिता के प्रवाह में स्नान करना चाहता है। वह जीवन के विकास के लिए कोई न कोई हेतु बनाता है, वह परम पावन पवित्र आत्मा का चिन्तन करता है, वह अंतरंग की दृष्टि की ओर उन्मुख होकर उन भव्यात्माओं के जीवन की ओर लक्ष्य बनाता…
आर्जव धर्म का लक्षण मोत्तूण कुडिलभावं, णिम्मलहिदएण चरदि जो समणो । अज्जवधम्म तइओ, तस्स दु सभवदि णियमेण । । ७३ । । जो मुनि कुटिलभावको छोड्कर निर्मल हृदयसे आचरण करता है उसके नियमसे तीसरा आर्जव धर्म होता है । । ७३ ।। सत्यधर्मका लक्षण परसतावणकारणवयण मोत्तूण सपरहिदवयण । जो वददि भिक्खु तुरियो, तस्स दु धम्म…
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म आर्यिका १०५ ज्ञेयश्री माताजी ब्रम्हचर्य का फल आज हम ब्रह्मचर्य के स्वरूप पर विचार करेंगे। जो व्यक्ति आजीवन समय के लिए ब्रह्मचर्य को धारण करता है उसने जान लिया है ईश्वर कोई नहीं है हम ही ईश्वर है हमारे अन्दर ही ईश्वर है। ब्रह्मचर्य के अनेक अर्थ हैं: प्रणव(जो मनुष्य को सदैव…
दशलक्षण भक्ति: (वसंततिलका छंदः) योगी क्षमागुणमयो भुवनैकबंधुः। क्रोधं निहत्य निज शांतरसे निमग्नः।। स्वात्मैकजन्यपरमामृतसंप्रतृप्तः। तं योगिनं हृदि दधे परमां क्षमां च।।१।। भावो मृदोर्भवति मार्दवधर्म एषः। अष्टौ मदानपि निरस्य विभाति साधौ।। वश्यं करोति भुवनं विनयैश्चतुर्धा। तं योगिनं हृदि दधे वरमार्दवं च।।२।। मायामपास्य सरलं कुरुते त्रियोगं। एकाग्रध्यानमपि साम्यतया विधत्ते।। मुक्तिर्भवेत् ऋजुगतेः खलु तस्य साधोः। तं योगिनं हृदि दधे…
क्षमावणी पर्व (गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के प्रवचनांश……..) पर्यूषण पर्व का प्रारम्भ भी क्षमाधर्म से होता है और समापन भी क्षमावणी पर्व से किया जाता है। दश दिन धर्मोें की पूजा करके, जाप्य करके जो परिणाम निर्मल किये जाते हैं और दश धर्मों का उपदेश श्रवण कर जो आत्म शोधन होता है, उसी के फलस्वरूप…