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सनी चौहान

May 1, 2019कविताएँjambudweep

सनी चौहान


बिना वैचारिक स्वतंत्रता के बुद्धि जैसी कोई चीज नहीं हो सकती अपनी आजादी के तमाम ताम झाम बनाने वाला इंसान हर दिन और अधिक गुलाम होता जा रहा है ” मानसिक गुलामी कितनी खतरनाक हो सकती है यह हम उस तोते से समझ सकते है , जिसे शुरुआत से ही पिंजड़े में बंद रखा जाए तो वह पिंजड़े का इतना अभ्यस्त हो जाता है कि बाद में पिंजड़े के द्वार खोल देने पर भी उस से बहार नहीं जा पता है ” यह उक्ति अक्षरशः सही है कि यदि किसी को शारीरिक गुलाम बनाया जाय तो वह अपने बन्धनों से आजाद हो सकता है परन्तु मानसिक रूप से गुलाम व्यक्ति पूरी जिन्दगी के लिए गुलाम हो जाता है।

मैं यहाँ पर आधुनिकता के नाम पर जो पाश्चात्य सभ्यता की मानसिक गुलामी बढ़ रही है उसकी बात करने वाला हूँ।

अगर आप ये लेख पढ़ रहे हो तो कृपया इसको अधुकिन समाज से relate कर पढ़े तो शयद मेरी भावनाओ को आप अच्छे से समझ पाएंगे । वस्तुतः ये स्वतंत्र चिंतन ही है जो हमे मौलिक एवं रचनात्मक बनाता है।

कम से कम कपड़े पहन अधिक से अधिक शरीर का प्रदर्शन करना यदि मार्डन है तो आदिवासी ज्यादा मार्डन और सभ्य हुए। संस्कृति का उद्देश्य मानव जीवन को सुंदर बनाना है। परन्तु पाश्चात्य संस्कृति में चमकते कांच झिलमिलाती रोशनी, शराब का प्याला और साथ में खड़ी अर्धनग्न लड़की उद्देश्य होता है। ऐसा लगता है टेलीविजन में दिखाए जाने वाले सिनेमा, सीरियल, विज्ञापन में अर्धनग्न महिलाओं को दिखाए जाने की अनुमति है। आइटम गर्ल और आइटम सांग के बिना कोई फिल्म बाक्स आफिस में हिट नहीं होती। पहनावे में भड़काउपन और खुलेपन की सोच के कारण स्त्री देवी के स्थान पर भोग्या बन गई ।

जहाँ पहले रिश्तों की अहमियता थी शादियां पूरी जिंदगी चलती थी आजकल रिश्ते चिप्स के पैकेट की तरह हो गए खाकर फैक दिए।

अवैद्य संबंधो की बाढ़ आ गई है। इस कारण अपराध की रोज बढ़ोतरी हो रही है। इन विचारों ने लोगों को कितना आजाद किया ये वही जाने पर मैं यह जानता हूँ कि धर्म और देश विध्वंस की ओर जा रहा है। यदि अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो इस छद्म आधुनिकता और वास्तविकता आधुनिकता के बीच अंतर समझना होगा। आधुनिकता के नाम पर हमारी संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। इस युग के दो मानव अपने को खोना चाहते हैं एक भोग रोग मद्यपान को चुनता है और एक योग त्याग आत्मध्यान को धुनता है। कुछ ही क्षणों में दोनों होते विकल्पों से मुक्त फिर क्या कहना एक शव के समान निरा पड़ा है और एक शिव के समान खरा उतरा है।

Tags: Jain Poetries
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