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सरस्वती की भण्डार जगत्माता ज्ञानमती जी

July 18, 2017ज्ञानमती माताजीjambudweep

सरस्वती की भण्डार जगत्माता ज्ञानमती जी



 
इतिहास गवाह है कि जब-जब इस पृथ्वी पर अत्याचार, अनाचार, दुराचार, शोषण, हिंसा, विद्वेष, अधर्म तथा कुरीतियों का बोल-बोला हुआ, तब-तब दिव्य आत्माओं ने इस धरती पर अवतार लेकर समाज में व्याप्त समस्त बुराईयों को दूर करने का बीड़ा उठाया और पीड़ित मानव की सेवा कर उन्हें धर्म के रास्ते पर लगाया।
 
२६सौ वर्ष पूर्व मानव जाति के जीवन में अमूलचूल बदलाव लाने हेतु भगवान महावीर का अवतरण हुआ, जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को प्रयोगशाला बनाकर उसके संशोधन के माध्यम से संसार को एक क्रांतिकारी देन दी। इसी शृंखला में २२ अक्टूबर १९३४ शरदपूर्णिमा के शुभ दिन मैना के रूप में ज्ञान का अवतार, सरस्वती का भंडार, गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का अवतरण टिकैतनगर में हुआ था।
 
जिनके दीक्षा की ५० वीं वर्षगांठ मनाने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो रहा है। जो अपने आप को जीत कर कर्मों का नाश करने में समर्पित रहते हैं, उन्हीं की जन्मजयंती या दीक्षा दिवस मनाया जाता है। पूज्य माताजी की प्रतिभा बहुमुखी है। दर्शनशास्त्र, धर्म, अध्यात्म, गणित, भूगोल, खगोल, नीति, इतिहास, कर्मकांड आदि विषयों पर उनका समान अधिकार है और यह देखने के पश्चात् ऐसा लगता है कि वे बहुत उच्च शिक्षित, किसी विद्यापीठ की डॉक्टरेट या डी.-लिट् उपाधि हासिल की हुई हैं परन्तु वे तो मात्र स्कूल में प्राइमरी कक्षा तक ही पढ़ी हुई हैं।
 
फिर इतना ज्ञान का भंडार उनमें समाकर वे कैसे ज्ञानमती माता कही जाती हैं? तो अवलोकन करने के पश्चात् पता चलता है कि उन्होंने अपने जीवन को सत्यान्वेषण और संयम की महासाधना में लगाया और उसके कारण आज वे इस मुकाम पर पहुँची हैं। दुनिया में चार प्रकार की माताएँ होती हैं….
 
१. पहली, जिसकी संतान इस धरातल पर जैसे-तैसे भरण-पोषण कर जीवन निर्वाह करती हैं।
 
२. दूसरी माता, जिसका पुत्र कुछ सामाजिक कार्य करते हुए जीवन पूर्ण करता है।
 
३. तीसरी माता, जिसे देशमाता या राजमाता कहा जाता है, जिसका पुत्र देश का उद्धार कर जनकल्याण करते हुए अपना कर्तव्य निभाता है।
 
४. चौथी माता, अपने पुत्रों को लौकिक ज्ञान देकर सुयोग्य बनाती है।

परन्तु यह माता इन सबसे बढ़कर श्रेष्ठ माता हैं।


 यह महामाता तथा जगतमाता है। जिसके आशीर्वाद से हम आत्मकल्याण के पथ पर कदम बढ़ाते हैं और अविनाशी सुख की प्राप्ति कर लेते हैं। ऐसी यह जगत्माता संस्कारों की प्रतिमूर्ति, संस्कृति की संवर्धिका, सरस्वती की आराधिका, विचारों के संकल्पों को साकाररूप देने वाली, असीम गुणों की भण्डार, जैन समाज की ज्योतिर्मय नक्षत्र एवं जैन संस्कृति की उन्नायक हैं। जिनका १८ वर्ष की छोटी सी आयु में लगाया गया वह वैराग्य का नन्हा-सा पौधा, आज ५० वर्ष का विशाल वटवृक्ष रूप धारण कर चुका है।
 
जिसमें कई धर्मानुरागीजन, श्रावक-श्राविकाएँ, ब्रह्मचारिणियाँ, मुनिगण छाया, स्नेह और शीतलता प्राप्त कर रहे हैं। वीर प्रभु से प्रार्थना है कि यह वटवृक्ष दिनोंदिन घना और विशाल होता रहे तथा चिरकाल तक पीड़ित मानव को अपनी छाया प्रदान करता रहे। पर्वत में ऊँचाई तो होती है, पर गहराई नहीं। सागर में गहराई तो होती है, पर ऊँचाई नहीं। गहराई और ऊँचाई यदि किसी में एक साथ देखना हो, तो वह गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी में मिलेगी।
 
आप में ज्ञान की गहराई व चारित्र की ऊँचाई एक साथ मुखर हो उठी है। माताजी की वाणी में सृष्टि का सार, जीवन का सौंदर्य, मानवता का मर्म, मनुष्यत्व की गरिमा, संस्कृति का स्वरूप, मुक्ति की प्रेरणा, तप और संयम का उत्कर्ष तथा जागरण का शंखनाद सुनाई देता है। उनके हृदय में दया, क्षमा, वात्सल्य, सहनशीलता और स्नेह का सागर हिलोर लेते रहता है।
 
जिनके वचनामृत में अमृत, जीवन की खुशहाली है ।
 
मुखमण्डल पर इनके स्वर्णिम, नव प्रभात की लाली है।
 
ओजस्वी है इनकी काया, नयनों में अनुराग है। चरणस्पर्श से जिनके धन्य औरंगाबाद है।
 
ऐसी प्रशम और प्रज्ञा की मूर्ति पूज्य माताजी के चरणारविंद में विनम्र विनयांजलि तथा भाव पुष्पांजलि अर्पित करता हुआ भावना करता हूँ कि इनके द्वारा जिनधर्म और जिनागम की प्रभावना सहस्रों वर्षों तक होती रहे।
 
Tags: Pravchan's Gyanmati Mataji
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