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सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में रासायनिक बंध व्यवस्था!

December 8, 2020शोध आलेखHarsh Jain

सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में रासायनिक बंध व्यवस्था


-सरिता जैन – विजयनगर , इन्दौर ( म० प्र० )

सारांश

आचार्य पूज्यपाद चौथी शताब्दी के प्रभावशाली दार्शनिक आचार्य हुए हैं। उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ पर सर्वाथसिद्धि शीर्षक अप्रतिम टीका का सृजन किया है। गद्य में लिखी गई यह मध्यम परिमाण की विशद् वृत्ति है। इस टीका में सूत्रानुसार सिद्धांत के प्रतिपादन के साथ दार्शनिक विवेचन, विज्ञान का भी वर्णन किया है। परमाणुओं में बंध की प्रक्रिया का अत्यन्त सूक्ष्म वर्णन प्रस्तुत किया गया है। आचार्य पूज्यपाद जी ने पौदगलिक स्वंध और उनके निर्माण हेतु आवश्यक बिन्दु एवं निर्मित स्वंध की प्रकृति इन नियमों को “सर्वार्थसिद्धि”-  “तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा”, (नेमीचंद्र शास्त्री, पृ.२२५,भाग-२,प्रका.आ. शांतिसागर छाणी ग्रन्थमाला, बुढ़ाना) ग्रंथ में विवेचित किया गया है।

१. सबसे पहले स्निग्ध व रुक्ष दो गुणधर्मों के मिलने पर बंध संभावना को सुनिश्चित किया है।

२. जघन्य गुणों में बंध नहीं होता है, अर्थात् जिनका शक्त्यांश निकृष्ट होता है वे जघन्य गुण वाले कहलाते हैं।

३. गुणों में समानता होने पर अर्थात् स्निग्ध व रुक्ष दोनों के शक्ति अंश बराबर होने बंध नहीं होता है।

४. दो अधिक शक्त्यांश वाले परमाणुओं में बंध होता है। दो स्निग्ध ± चार रूक्ष ·बंध तीन स्निग्ध± पाँच रूक्ष ·बंध

५. स्निग्ध रूक्ष के साथ दो से अधिक शकत्यांश होने पर भी बंध होता है। आधुनिक रसायन विज्ञान की कसौटी पर इन नियमों की तुलना करने पर ज्ञात होता है कि बंध के ये नियम आधुनिक रसायन विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में कितनी समानता रखते है।

युगबोध रसायन   ( प्रो. एस, आर, साहू, युगबोध प्रकाशन, ६१ समता कॉलोनी, रायपुर छत्तीसगढ़)

१. विद्युत संयोजी बंध

२. सह संयोजी बंध

३. उपसह संयोजी बंध। सर्वार्थसिद्धि के नियमों का समायोजन विद्युत संयोजी बंध में होता है।

जिसका वर्णन निम्नानुसार है—     

ऐसी संयोजकता जिसमें इलेक्ट्रान का स्थानांतरण एक परमाणु से दूसरे परमाणु में होता है,उसे विद्युत संयोजकता कहते है तथा इस प्रकार बनने वाले बंध को विद्युत संयोजी बंध कहते हैं। जब परमाणु एक इलेक्ट्रान खोता है तब उस पर धनात्मक आवेश आ जाता है तथा जो परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करता है तो उस पर ऋणात्मक आवेश आ जाता है। विपरीत आवेश के कारण ये एक दूसरे के पास आते हैं और स्थिर विद्युत आकर्षण बल द्वारा बंध बना लेते हैं।

नियम १:

स्निग्ध व रूक्ष के मिलने पर बंध की संभावना- रसायन विज्ञान में तत्त्व दो प्रकार के होते हैं धातु और अधातु। धातु ऐसे पदार्थ होते है, जिन पर चमक होती है, क्षारीय होते हैं, तथा इनकी विद्युत ऋणात्मक का मान कम होता हैं। इनमें चिकनाई तथा चमक होती हैं, इसलिए इन्हें स्निग्ध मान सकते हैं। अधातु ऐसे पदार्थ होते हैं जो अम्लीय प्रकृति के होते हैं, तथा इनकी विद्युत ऋणात्मकता का मान उच्च होता है। इन पर चमक नहीं होती है, तथा रूखे होने के कारण इन्हें रुक्ष माना जा सकता है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है, कि स्निग्ध व रुक्ष के बीच बंध बन सकते हैं-

उदाहरण: 

2Na + Cl2 2Nacl (सोडियम) (क्लोरीन) (सोडियम क्लोराइड) २Mg + Cl2 २ MgCI (मैग्नीशियम (क्लोरीन) (मैग्नीशियम क्लोराइड)

नियम २ :

जघन्य गुणों में बंध नहीं होता है, अर्थात् जिनका शक्ति अंश निकृष्ट होता है, उनमें बंध नहीं होता है।रसायन विज्ञान के अनुसार भी यदि दो परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता में कम अंतर हो तो उनके बीच बंध नहीं बनता है।

उदाहरण

१. हाइड्रोजन और क्लोरीन की विद्युत ऋणात्मक क्रमश: २.१ तथा

२.८ होती है। विद्युत ऋणात्मकता में अन्तर २.८ — २. १ ०.७ अत: इनके मध्य विद्युत संयोजी बंध नहीं बन सकता है। उदाहरण २. कॉपर तथा क्लोरीन की विद्युत ऋणात्मकता क्रमश: १.९ तथा

२.८ होती है। विद्युत ऋणात्मक में अन्तर २.८-१.९ = ०.९ अत: इनके मध्य विद्युत संयोजी बंध नहीं हो सकता।

नियम ३ :

गुणों में समानता होने पर बंध नहीं होता हे। ऐसे परमाणु जिनके गुण समान हों उनके बीच बंध नहीं होता है। रसायन विज्ञान में भी जिन परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता समान हो वो संयोजी बंध द्वारा नहीं जुड़ पाते हैं।

उदाहरण :

H1 तथा अणुओं का बनना विद्युत संयोजी बंध के द्वारा संभव नहीं होता है क्योंकि प् के दोनों परमाणु की विद्युत ऋणात्मकता समान होती है। (२.१) तथा ण्त् के भी दोनों परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मक (२.८) आपस में समान होती है।

नियम ४ :

दो अधिक शक्ति अंश वालों में बंध होता है। तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार दो अधिक गुण वाले परमाणुओं के बीच बंध होता है। रसायन विज्ञान के अनुसार यदि परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता में दो या दो से अधिक का अंतर हो तो ही उनके मध्य विद्युत संयोजी बंध बनते हैं।

उदाहरण

१. सोडियम तथा क्लोरीन की विद्युत ऋणात्मकता क्रमश: ०.८ तथा २.८ होती हैं, अत: विद्युत ऋणात्मकता में अंतर २.८ — ०.८ २ उदाहरण

२. पोटेशियम तथा क्लोरीन की विद्युत ऋणात्मक क्रमश: ०.८ तथा २.८ होती है अत: विद्युत ऋणात्मकता में अन्तर २.८ — ०.८ २

नियम ५

स्निग्ध रूक्ष के साथ दो से अधिक शक्ति अंश होने पर बंध बनता है। रसायन विज्ञान में भी दो परमाणुओं की विद्युत ऋणात्मकता मे दो से अधिक अंतर होने पर विद्युत संयोजी बंध बनता है।

उदाहरण : 

सोडियम की विद्युत ऋणात्मक .८ तथा क्लोरीन की ४ होती है। अत: विद्युत ऋणात्मकता में अन्तर ४ .८ ३.२ अत: इनके मध्य विद्युत संयोजी बंध बनता है। अत: सर्वार्थसिद्धि ग्रंथ में प्रस्तुत रासायनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में दृष्टव्य है।

भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते  (तत्त्वार्थसूत्र, आचार्य उमास्वामी, ५/२६ )

भेद से, संघात से तथा भेद और संघात दोनो से स्वंध उत्पन्न होते हैं। अतरंग और बहिरंग इन दोनों प्रकार के निमित्तों में संघातों के विदारण करने को भेद कहते है तथा पृथग्भूत हुए पदार्थों के एकरूप हो जाने को संघात कहते हैं। दो परमाणुओं के संघात से दो प्रदेशवाला स्वंध उत्पन्न होता है।दो प्रदेश वाले स्वंध और अणु के संघात से या तीन अणुओं के संघात से तीन प्रदेशवाला स्वंध उत्पन्न होता है। इस प्रकार संख्यात,असंख्यात, अनंत और अनंतानंत अणुओं के संघात से उतने-उतने प्रदेशों वाले स्वंध उत्पन्न होते हैं।सर्वार्थसिद्धि आचार्य पूज्यपाद,भारतीय ज्ञानपीठ,५/२६-५७६, पृ. २२७ अनंतानंत परमाणुओं के समुदाय से निष्पन्न होकर भी कोई स्वंध चाक्षुष होता है और कोई अचाक्षुष।भेद और संघात से चाक्षुष स्वंध बनता है।वही, ५/२८-५८०, पृ.२२८

“स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्धः”(तत्त्वार्थसूत्र, आचार्य उमास्वामी,५/३३)

स्निग्ध और रूक्षत्व से बंध होता है। बाह्य और अभ्यंतर कारण से जो स्नेह पर्याय उत्पन्न होती है, उससे पुद्गल स्निग्ध कहलाता है।रूखापन के कारण रूक्ष कहा जाता है। स्निग्ध पुद्गल का धर्म स्निग्धत्व है।सर्वार्थसिद्धि आचार्य पूज्यपाद, भारतीय ज्ञानपीठ ५/३३-५९०, पृ.२३२

“न जघन्यगुणानाम्”  (तत्त्वार्थसूत्र, आचार्य उमास्वामी, ५/३४)

जघन्य (निकृष्ट) गुण वाले (भाग वाले) पुदगलों का बंध नहीं होता है। अर्थात् जिनमें जघन्य गुण होता है,अर्थात् जिनका शक्त्यंश निकृष्ट होता है, वे जघन्य गुण वाले कहलाते हैं। जघन्य गुण वालो का बंध नहीं होता।सर्वार्थसिद्धि, आचार्य पूज्यपाद, भारतीय ज्ञानपीठ, ५/३४-५९२,पृ.२३३

“गुणसाम्ये सदृशानाम्” (तत्त्वार्थसूत्र, आचार्य उमास्वामी,५/३५)

गुणों की समानता होने पर तुल्य जाति वालों का बंध नहीं होता।

“द्वयधिकादिगुणानां तु” (वही, ५/३६)

दो अधिक आदि शक्त्यांश वालों का तो बंध होता है। जिसमें दो शक्त्यांश अधिक हों उसे द्वयधिक (चार शक्त्यांश वाला) कहते हैं।सर्वार्थसिद्धि आचार्य पूज्यपाद, भारतीय ज्ञानपीठ,५/३६/-५९६,पृ.२३४

“बन्धेऽधिकौ पारिमामिकौ च” (तत्त्वार्थसूत्र आचार्य उमास्वामी,५/३७)

बंध होते समय दो अधिक गुणवाला परिणमन करने वाला होता है। दो शक्त्यांश आदि वाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु का चार शक्त्यांश आदि वाला स्निग्ध या रूक्ष परमाणु पारिमाणिक होता है।सर्वार्थसिद्धि आचार्य पूज्यपाद, भारतीय ज्ञानपीठ,५/३७-५९८,पृ.२३५ क्रमांक गुणांश सदृशबंध विसदृश बंधवही

१. जघन्य + जघन्य नहीं नहीं

२. जघन्य + एकादि अधिक नहीं नहीं

३. जघन्येतर + समान जघन्येतर नहीं नहीं

४. जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर नहीं नहीं

५. जघन्येतर + द्वयाधिक जघन्येतर है है

६. जघन्येतर + त्यादिअधिकजघन्येतर नहीं नहीं

उपसंहार


 उपर्युक्त सूत्रों के विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि-

१. विज्ञान मान्य परमाणु जैन दर्शनकारों की दृष्टि से स्वंध माना जायेगा, क्योंकि परमाणु के नाभिक में तीन प्रकार के मौलिक कण उपस्थित रहते हैं।

२. जैन दर्शन में अणु एवं परमाणु समानार्थक हैं, जबकि विज्ञान में अणु को परमाणु से भिन्न माना गया है। विज्ञान मान्य गुण की उत्पत्ति दो या दो से अधिक समान परमाणुओं अथवा असमान परमाणुओं के योग से मानी गयी है।

३. ‘स्निग्ध रूक्षत्वाद बंध:’ नामक सूत्र में जो स्निग्ध एवं रुक्ष परमाणुओं का उल्लेख किया है, वास्तव में उनका स्निग्ध परमाणुओं से तात्पर्य घात्विक परमाणुओं एवं रुक्ष परमाणुओं से तात्पर्य अधात्विक परमाणुओं से रहा होगा।

४. धातु तत्व जैसे-  सोना, चाँदी, लोहा, जस्ता आदि स्निग्ध तत्व है। इन तत्वों की वैद्युत ऋणात्मकता (परमाणुओं का एक विशिष्ट गुण) अधातु तत्वों के परमाणुओं की तुलना में कम होती है एवं तत्व क्षारकीय गुण वाले होते हैं।

५. अधातु तत्व जैसे सिलीकान बोरान, हीरा, क्लोरीन, ब्रोमीन, फ्लोरीन आदि रुक्ष तत्व हैं।इन तत्वों की वैद्युत ऋणात्मकता धातु तत्वों की तुलना में अधिक तथा स्वभाव से अम्लीय होते हैं। 

 
Tags: Arhat Vachana
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