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सोच,!

July 14, 2017कहानियाँHarsh Jain

सोच


एक बार एक कंजूस सेठ गहरे गड्ढे में गिर गया और पानी में डुबकियाँ लगाने लगा। किसी व्यक्ति को सेठ को डूबता देखकर दया आ गई। उसने तुरन्त कहा—लाओ ! अपना हाथ दो, मैं पकड़कर खींच लूगा। पर वह कंजूस उसकी बात नहीं मान रहा था। इतने में सेठजी का पड़ौसी वहाँ पहुँचा। वह सेठ के स्वभाव को अच्छी तरह जानता था, उसने दयालु व्यक्ति की बात की बात को दूसरे शब्दों में कहा—उसने हाथ बढ़ाते हुए कहा—लो लालाजी ! मेरा हाथ इसे पकड़कर आप बाहर आ जाओ। सेठ ने तुरन्त उसका हाथ पकड़ लिया और बाहर आ गये। उस दयालु व्यक्ति ने आश्चर्य से इसका कारण पूछा तो पड़ौसी ने बताया सेठ बहुत कंजूस है। वह लेना जानते हैं, देना नहीं। तुमने कहा–‘लाओ’ मैंने कहा ‘लो’ यह है लाओ और लो का अन्तर।
सम्पादक ब्र. संदीप ‘सरल’
घर घर चर्चा रहें ज्ञान की ११-२० जनवरी २०१५
 
Tags: Stories
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