जैनधर्म के अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म २६१८ वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त के ‘‘कुण्डलपुर’’ नगरी के राजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला की पवित्र कुक्षि से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी तिथि में हुआ । वीर, महावीर, सन्मति, वर्धमान और अतिवीर इन पांच नाम से विख्यात तीर्थंकर महावीर बाल ब्रह्मचारी थे, जिनके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष इन पंचकल्याणकों को मनाकर सौधर्म इन्द्रादि देवों ने अपने को धन्य-धन्य माना था ऐसे प्रभु महावीर ने तीस वर्ष की युवावस्था में पूर्व भव के जातिस्मरण हो जाने से जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली और उनका प्रथम आहार ‘‘कूल ग्राम’’ में राजा कूल के यहां हुआ ।
दीक्षा के १२ वर्ष पश्चात् प्रभु को दिव्य केवलज्ञान की प्राप्ति हुई उसी बीच में किसी एक दिन भगवान महावीर ‘‘कौशाम्बी’’ नगरी में आहार के लिए पहुंचे । वहां राजा ‘चेटक’ की सबसे छोटी पुत्री ‘‘चन्दना’’ एक सेठानी के द्वारा सताई हुई साकलों में बंधी थी और कोदों का तुच्छ भोजन ग्रहण करती थी किन्तु भगवान महावीर को देखते ही उसने भक्तिपूर्वक उनका पड़गाहन किया जिसके प्रभाव से सारे बंधन टूट गए, वह वस्त्राभूषणों से सुन्दर हो गई और कोदों का चावल ‘‘शालि’’ धान्य में परिवर्तित हो गया पुन: चन्दना ने श्रद्धा सहित भगवान महावीर को आहारदान दिया और देवताओं ने उस समय रत्नवृष्टि कर दान का महत्त्व प्रर्दिशत किया ।
केवलज्ञान होने के पश्चात् ३० वर्षों तक उन्होंने सारे देश में भ्रमण कर जनता को दिव्य उपदेश दिया पुन: ७२ वर्ष की उम्र में बिहार की ‘‘पावापुरी’’ नगरी में कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन समस्त कर्मों का नाशकर निर्वाण प्राप्त कर लिया । जैन पुराणों के अनुसार तब से ही ‘‘दीपावली पर्व’’ मनाया जाने लगा । भगवान महावीर के निर्वाण को आज २५४६ वर्ष हो गये हैं और वर्तमान में २५४७ वां वीर निर्वाण संवत् चल रहा है ।
श्री पूज्यपाद स्वामी ने निर्वाणभक्ति में, आचार्य श्रीगुणभद्र स्वामी ने उत्तरपुराण ग्रन्थ में,श्री समंतभद्र स्वामी ने स्वयंभूूस्तोत्र में उस पावापुरी तीर्थ की वन्दना की है और बताया है कि भगवान महावीर ने किस प्रकार कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के अंत में अघातिया कर्मों को नष्टकर निर्वाण पद प्राप्त कर लिया । हरिवंशपुराण में भी यही लिखा है एवं दीपावली पर्व तभी से प्रारम्भ हुआ ऐसा कहा है ।
उसमें कहा है कि भगवान के निर्वाणकल्याणक की भक्ति से युक्त संसार के प्राणी इस भरतक्षेत्र में प्रतिवर्ष आदरपूर्वक प्रसिद्ध दीपमालिका के द्वारा भगवान महावीर की पूजा करने के लिए उद्यत रहने लगे अर्थात् भगवान के निर्वाणकल्याणक की स्मृति में दीपावली पर्व मनाने लगे ” वर्तमान परिप्रेक्ष्य में – भगवान के इस निर्वाणोत्सव दिवस अर्थात् दीपावली पर्व को भारतवर्ष में एक प्राचीन त्योहार के रूप में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, वह भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण त्योहारों में से एक है । यह दीपों का पर्व है, आध्यात्मिक रूप मे यह अन्धकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है ।
मात्र भारत में ही नहीं अपितु दुनिया के कई देशों में यह पर्व अत्यन्त धूमधाम से मनाया जाता है, इस पर्व का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है । धनतेरस से लेकर भैया दूज तक चलने वाला ये पांच दिन का त्योहार है । दीपावली का शाब्दिक अर्थ है दीपों की अवली अर्थात् पंक्ति । इस पर्व को मात्र जैन धर्मावलम्बी ही नहीं अपितु हिन्दू, सिख, बौद्ध आदि भी मनाते हैं । इस दिन लोग घर, दुकान आदि की सफाई, मरम्मत, रंग-रोगन आदि कराकर सुन्दर रंगोली बनाते हैं और दीपक सजाकर एक दूसरे को मिष्ठान, मेवा आदि देकर परस्पर प्रेम का प्रदर्शन करते हैं ।
आध्यात्मिक महत्त्व – जहां जैन धर्मावलम्बी इसे भगवान महावीर के मोक्षदिवस के रूप में मनाकर निर्वाण लाडू चढ़ाते हैं, और चूंकि उसी दीपावली के दिन सायंकाल भगवान महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को दिव्य केवलज्ञान की प्राप्ति हुई् अत: सायंकाल गौतम गणधर स्वामी, केवलज्ञान महालक्ष्मी की एवं सरस्वती माता की पूजा करते हैं तथा बही खाता आदि रखकर उस पर मंत्रोच्चारपूर्वक पूजन करते हैं, दीपमालिका सजाकर खुशियां मनाते हैं । वहीं हिन्दू लोग मानते हैं कि दीपावली के दिन भगवान राम १४ वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या आए थे तब अयोध्यावासियों ने घी के दीप जलाए थे । सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था अत: लोागों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी, कुछ ऐसा भी मानते हैं ।
वैदिक महाभारत के अनुसार पाण्डव अज्ञातवास पूर्ण कर दीपावली के दिन लौटे थे तब पूर्ण हर्षोल्लास के साथ दीपावली मनाई गई थी । सिख समुदाय इसे ‘बन्दी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाते हैं उनके अनुसार सन् १६१९ में सिखों के छठे गुरू हरगोविन्द ग्वालियर में जहांगीर की कैद से मुक्त हुए थे इसकी स्मृति में इसे मनाया जाता है तथा इस दिन अमृतसर में सन् १५७७ में स्वर्णमन्दिर का शिलान्यास हुआ था । बौद्ध, सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने के उत्सव में दीपावली मनाते हैं, वे इसे अशोक विजयादशमी भी कहते हैं ।
आइने अकबरी के अनुसार सम्राट अकबर दीपावली के दिन दौलतखाने के सामने सबसे ऊंचे स्तम्भ पर बड़ा सा आकाशदीप लटकाते थे । इसके अतिरिक्त और भी कई प्राचीन कथानक इस पर्व से जुड़े हैं । भारत के विभिन्न राज्यों की विचित्र परम्पराएं- दीपावली पर देश के कई राज्यों में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सूप बजाते हुए मां लक्ष्मी की प्रार्थना की जाती है, कई जगह अरंजी की लकड़ियों का हुक्का बनाया जाता है, इसे जलाकर पूरे घर में घुमाने के बाद बुझाकर छत पर फ़ेंक देते हैं, इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा चली जाती है ।
देश के कई क्षेत्रों में दीपावली पर मंदिरों में नई झाडू दान देने की परम्परा है । उत्तराखण्ड में थाउजन जाति के लोग अपने मृत पूर्वजों के साथ दीवाली मनाते हैं । राजस्थान में बिल्ली की मेहमानों की तरह स्वागत सत्कार कर दीपावली मनाई जाती है । गुजरात में नमक को साक्षात लक्ष्मी का प्रातीक मानकर खरीदी बिक्री की जाती है । केरल में भगवान राम के जन्मदिवस के रूप में इसे मनाते हैं । गोवा में दीपावली के दिन नारियल के पेड़ पर चढ़कर दीप जलाने की परम्परा है । कोंकण इलाके में इस दिन आधी रात के समय पूरे गांव वाले गांव के बाहर सामूहिक रूप से इस पर्व को मनाते हैं ।
झारखण्ड के कुछ इलाकों में दीपावली के दिन रात्रि में घर के दरवाजे बंद नहीं किये जाते । अरुणाचल प्रदेश में दीपावली के पूर्व रात में गांव- नगर के लोग खुले मैदान में जुआ खेलते हैं । महाराष्ट्र में दीपावली के दिन यमदेव तथा राजा बलि की सामूहिक पूजा अर्चना करते हैं । पश्चिम बंगाल में इस दिन मां काली की पूजा का हर घर में विशेष महत्त्व है । छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली को ‘‘सुरहोती’’ नाम से जान जाता है ।
विश्व में दीपावली पर्व का महत्त्व- विश्व में भारत, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, मॉरीशस, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो, सूरीनाग, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया में सरकारी अवकाश रहता है । भारत और नेपाल में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, इस दिन लोग गहने, वस्त्र, उपहार, रसोई के बरतन, सोने-चांदी के सामान खरीदते हैं, परिवार के सदस्यों को उपहारस्वरूप मिठाई और सूखे मेवे देते हैं, रंगोली बनाकर दीपमालिका सजाते हैं, लाई बताशा खरीदते हैं । नेपाल संवत में इस दिन नया वर्ष शुरू होता है जिसे ‘तिहार ’ कहते हैं ।
मलेशिया में इसे ‘हरी दीवाली’ कहते हैं । तिब्बत में चांदी की थाली में दीप सजाकर बौद्धों की देवी तारा की उपासना की जाती है । कोरिया में भी तिब्बत जैसी परम्परा का निर्वहन किया जाता है । श्रीलंका में हाथियों को सजाकर जुलूस निकाला जाता है और चीनी मिट्टी के खिलौनों की प्रदर्शनी लगाई जाती है । इंग्लैण्ड में गार्ड फारस डे के नाम से दीपोत्सव मनाते हैं और खूब आतिशबाजी करते हैं । थाईलैण्ड में दीपोत्सव पर्व लाभ क्रायोंग के नाम से मनाते हैं । चीन व जापान में दीपावली को लालटेन का त्योहार के नाम से मनाते हैं । मिस्र व यूनान के मंदिरों में मिट्टी व धातु के दीपक प्रज्वलित करने के साक्ष्य प्राप्त हैं । सूडान में मां लक्ष्मीजी को धान्य उत्पन्न करने की देवी के रूप में जान जाता है ।
ग्रीस में सामाजिक सम्पन्नता की देवी के रूप में ‘री’ की उपासना का प्रचलन है । अमेरिका में दीपावली मनाने की परम्परा की शुरूआत जार्ज डब्ल्यू बुश ने व्हाइट हाउस से किया था अब इसे भव्यता के साथ सार्वजनिक रूप से उत्साह से मनाते हैं । इसके अतिरिक्त मेलबर्न, न्यूजीलैंड, बीली लीव, इण्डोनेशिया आदि देशों में अत्यन्त उत्साह से दीपावली पर्व धूमधाम से मनाते हैं । व्यापारिेक महत्त्व- दीपावली व्यापारीवर्ग का विशेष पर्व है, इस दिन से उनका नववर्ष प्रारम्भ होता है और साल भर का लेखा जोखा खत्म कर नए खाता-बही तैयार किए जाते हैं ।
दीपावली तक सभी पुराने लेन-देन का निपटारा कर के नए वर्ष का प्रारम्भ किया जाता है । दीपावली के पावन दिन लोगों द्वारा गहने, वस्त्र, रसोई के बरतन, खिलौने, चांदी-सोने के बर्तन आदि की खरीद से व्यापारीवर्ग को विशेष लाभ होता है । वैज्ञानिक महत्त्व- दीपावली से मौसम वर्षा ऋतु से निकलकर शरदऋतु में प्रवेश करता है । इस समय वातावरण में वर्षा ऋतु में पैदा हुए विषाणु एवं कीटाणु सक्रिय रहते हैं और घर में दुर्गन्ध व गन्दगी फैल जाती है । दीपावली में साफ-सफाई, मरम्मत, रंग-रोगन से गंदगी तो समाप्त होती ही है, दीपमालिका से घी व वनस्पति तेल जलने से वातावरण की दुर्गन्ध समाप्त हो सर्वत्र सुगन्धि हो जाती है, वातावरण स्वच्छ हो जाता है, विषाणु और कीटाणु नष्ट हो जाते हैं ।
वायुप्रदूषण और अन्य चिन्तनीय पक्ष – संसार में जहां कुछ लोग अच्छे हैं वहीं कुछ लोग व्यसनों में पड़कर खुद को तो बर्बाद करते ही हैं, देश और समाज को भी प्रदूषित करते हैं, उदाहरणस्वरूप दीपावली जैसे पवित्र त्योहार पर जहां लोग दीपमालिका आदि के द्वारा खुशियां मनाते हैं वहीं कुछ लोग शराब पीकर जुआ खेलते हुए इस दिवस को व्यतीत करते हैं जिससे न सिर्फ उनका अहित होता है , न सिर्फ उनका नुकसान होता है अपितु उनका परिवार, उनका समाज भी अन्य लोगों द्वारा गिरी हुई दृष्टि से देखा जाता है ।
इसके अतिरिक्त लोगों द्वारा जलाए जाने वाले पटाखों से इतना अधिक वायुप्रदूषण होता है जिससे कई एक बीमारियां होती हैं, वातावरण विषाक्त हो जाता है जिनका असर न सिर्फ मानव अपितु जीव जन्तु व पेड़-पौधों पर भी होता है अत: हमें चाहिए कि परस्पर मिलन, प्रेम, भाईचारे और अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले इस त्योहार को अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाएं और संकल्प करें कि हम भगवान महावीर, भगवान राम जैसे महान आत्माओं के जीवन से शिक्षाएं ग्रहण कर अपने जीवन को आदर्श बनाएंगे, दीपमालिका के इस पर्व पर अपने अन्दर आए हर प्रकार के कल्मष, हर प्रकार के अन्धकार , हर प्रकार के व्यसन को दूर कर नूतन प्रकाश को अपने अन्दर प्रज्वलित करते हुए अनेक दुखी बेसहारा लोगों के जीवन में प्रकाश लाएंगे ।
जुआ, शराब आदि व्यसनों से दूर रहते हुए खुद भी पटाखे से दूर रहेंगे और लोगों को भी इस हेतु प्रेरित करेंगे जिससे वर्तमान में पटाखों से होने वाली आगजनी और जलने की दुर्घटनाएं कम हो सकें । तो आइए इस पवित्र संकल्पो के साथ इस दीपावली से एक नए जोश नई उमंग के साथ इसे मनाते हुए अपने जीवन में ज्ञानज्योति को प्रज्वलित करें, दीपावली का पर्व सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियां लाए यही भगवान महावीर से मंगल प्रार्थना है ।