१. अपना भाषण हमेशा स्वयं तैयार करो, कभी दूसरों से मत लिखाओ । हाँ, योग्य पुरुषों से विषय से संबंधित जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।
२. भाषण तैयार करने से पूर्व संबंधित विषय पर गहन चिंतन करो । उसके संदर्भ में जहाँ जो भी सामग्री मिले, उसे पढ़कर उसके आधार पर नोट्स तैयार करो ।
३. भाषण की भाषा सरल और मुहावरेदार तो हो, किन्तु क्लिष्ट कतई न हो ।
४. भाषण के लिए जाने से पूर्व अपने दिगामी कम्प्यूटर में उसकी एक छोटी सी रूपरेखा और क्रम सेट कर लो, ताकि कहीं अटकने या भूलने की नौबत न आए ।
५. बोलते समय सोचो कि सामने जो सुनने वाले लोग बैठे हैं, वे सभी सामान्यजन हैं और उन सबके बीच तुम विशिष्ट हो। इससे बोलते समय जवान कभी लड़खड़ायेगी नहीं और आत्मविश्वास बना रहेगा ।
६. श्रोताओं से आँख मिलाकर बोलो और ऐसे बोलो कि उन्हें लगे कि तुम उनसे बातचीत कर रहे हो, कोई नसीहत नहीं दे रहे हो ।
७. बोलते समय बीच-बीच में शिष्ट हास्य का पुट भी देते रहो, ताकि श्रोताओं की तन्मयता बनी रहे और बोर न हों ।
८. कभी व्यंग्य भी करो तो शालीनता से। भाषण में फूहड़पन नहीं आना चाहिए ।
९. अधिक विद्वत्ता या पाण्डित्य का प्रदर्शन करना वक्ता की कुशलता का माप नहीं है । वक्ता की योग्यता इस बात पर निर्भर है कि वह जितना भी जानता है, थोड़ा या बहुत, उसे श्रोताओं के हृदय में उतार पाता है या नहीं ।
१०. किसी भी वक्ता को अपनी बातें इस तरह प्रस्तुत करनी चाहिए कि श्रोताओं में अंत तक सुनने की उत्सुकता बनी रहे। उत्सुकता को बनाये रखना एक प्रकार का सम्मोहन है और जिसे वह कला आती है, उसके श्रोतागण कीलित हो जाते हैं ।