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अजितसागर महाराज स्तुति:
September 19, 2017
स्तुति
jambudweep
श्री अजितसागर जी महाराज स्तुति:
रचयित्री—आर्यिका श्री
जिनमती
माताजी
छन्द
बसन्ततिलका बालव्रतं प्रविदधाति सुनिर्भरं यो, श्री वीरसागरगुरोश्चरणे सुभक्त्या।
ज्ञानोपयोगममलं सततं विधत्ते, यस्तं नमाम्यजितसागरसूरिवर्यम्।।१।।
आचार्य शिवसागर
सन्निधै यो, दीक्षामधार यदसौ विषयान् विजित्य।
चारित्रपालनविधौ सततं यतन्तम्, भक्त्या नमाम्यजितसागरसूरिवर्यम्।।२।।
क्षान्त्यार्जवादिगुणवारिधिशीतरश्मे:, आचार्य मुख्य श्रुत शेवति धर्मिंसधो:।
पट्टं दधाति विधिवत् परिपूज्यमान:, यस्तं नमाम्यजितसागरसूरिवर्यम्।।३।।
पंचप्रकारपरिवर्तनकं छिनत्ति,
रत्नत्रयं
परिदधाति दिगम्बर: सन्।
मोहस्य नाशकरणे यतते सदा तं, नित्यं नमाम्यजितसागरसूरिवर्यम्।।४।।
काव्याण्यलंकृतिसमन्वितिंपगलानि, सिद्धान्तव्याकरणनीतिसुभाषितानि।
शास्त्राण्यधीत्य निपुण: परपाठने तं, भक्त्या नमाम्यजितसागरसूरिवर्यम्।।५।।
वात्सल्यमेव कुरुते जिनर्धािमकेषु, नि:कांसितस्तनुमनो विषयेयु सुष्ठु।
तत्त्वोपदेशनविधिं सुगिरा विधत्ते, यस्तं नमाम्यजितसागरसूरिवर्यम्।।६।।
अजितसागराचार्य ! चिरं नन्द्यात् महीतले।
जिनमत्या मतिर्भूयात् स्वात्मन्येव पुन:—पुन:।।
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