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अज्ञान :!
November 27, 2015
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[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] [[अज्ञान :]] ==
अज्ञान :
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अज्ञानात् ज्ञानी, यदि मन्यते शुद्धसम्प्रयोगात्। भवतीति दु:खमोक्ष:, परसमयरतो भवति जीव:।।
—समणसुत्त : १९४
अज्ञानवश यदि ज्ञानी भी ऐसा मानने लगे कि शुद्ध सम्प्रयोग अर्थात् भक्ति आदि शुभभाव से दु:ख—मुक्ति होती है, तो वह भी राग का अंश होने से परसमयरत होता है।
जल बुब्बयसारिच्छं धनजोव्वण जीवियं पि पेच्छंता। मण्णंति तो वि णिच्चं अइवलिओ मोहमाहप्पो।।
—द्वादशअनुप्रेक्षा : २१
धन, यौवन और जीवन को जल के बुलबुले के समान देखते हुए भी मनुष्य उन्हें नित्य मानता है, यह बड़ा आश्चर्य है। मोह का माहात्म्य अति बलवान है।
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